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गोरक्षपीठ का अयोध्या स्थित श्रीराम जन्म भूमि आन्दोलन से गहरा सम्बन्ध रहा है : योगी

Desk by Desk
31/08/2020
in Main Slider, उत्तर प्रदेश, ख़ास खबर, गोरखपुर
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सीएम योगी आदित्यनाथ

मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ

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गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पीठ का अयोध्या स्थित श्रीराम जन्म भूमि आन्दोलन से गहरा सम्बन्ध रहा है।

सोमवार को ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ के 51वीं एवं राष्ट्र संत महन्त अवेद्यनाथ के छठवीं पुण्यतिथि के अवसर पर “प्रथम दिन श्रीराम जन्म भूमि मन्दिर का शुभारम्भ भारत में एक नये युग का आरम्भ ”विषय पर श्री योगी ने कहा कि अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण से सम्पूर्ण भारतवर्ष गौरवान्वित हुआ है। उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के पूर्व महन्तद्वय ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ एवं राष्ट्रसंत महन्त अवेद्यनाथ के संकल्पो की सिद्धि भी मन्दिर शुभारम्भ के साथ हुई जो भारत में राम राज्य की स्थापना के लिए अपना सम्र्पूण जीवन समर्पित किये थे इसलिए गोरक्षपीठ का श्रीराम जन्म भूमि आन्दोलन से गहरा सम्बन्ध रहा है।

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उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण एक नये युग का शुभारम्भ है और कोई भी भारतीय ऐसा नहीं होगा जो भगवान श्रीराम के दिव्य आदर्शों से प्रभावित न/न हो, भले ही उसकी शिक्षा क्यों न/न विकृत शिक्षा प्रणाली में हुई हो। सन् 1528 से लेकर 2020 तक प्रत्येक काल खण्ड में चाहे सरकार किसी की भी क्यों न/न रही हो समाज निरन्तर श्रीराम जन्म भूमि के लिए संघर्ष करता रहा है। लाखों श्रीराम भक्तों के बलिदान और भारत की शाश्वत संत परम्परा के नेतृत्व के बाद आज अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

श्री योगी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण का निर्णय और उसके बाद आम जन के उस निर्णय के प्रति सहर्ष सहमति भारतीय लोक तंत्र के शाश्वत मूल्यों व आदर्शों का प्रत्यक्ष उदाहरण है। हम अपनी शाश्वत परम्परा और पूर्वजों के प्रति सम्मान से ही भारत देश का गौरवशाली वर्तमान और उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

योगी ने कहा कि सकारात्मक सोच जो लोक कल्याण के मार्ग से सबका साथ, सबका विकास के मूल मंत्र पर आधारित है, वह भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा का ही पर्याय है। भारत की यशस्वी परम्परा में स्वार्थ नहीं परमार्थ का भाव है। मई 2014 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत में शासन सत्ता की स्थापना राम राज्य की स्थापना ही तो है। राम का कार्य लोक कल्याण का ही कार्य है। इस दृष्टि से श्रीराम जन्म भूमि पर श्रीराम मन्दिर का निर्माण लोक मंगल और लोक कल्याण का सर्वोत्कृष्ट कार्य कह सकते हैं। वर्तमान सरकार द्वारा विभिन्न लोक कल्याणकारी कार्य जिसमें वंचितों, असहायों, गरीबों के जीवन में खुशहाली ले आना उसी कड़ी के रूप में देखा जा सकता है।

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उन्होंने कहा कि वास्तव में वर्तमान सरकार के लोक कल्याणाकारी कार्य जिसकी सर्वाधिक प्रतिस्थापना श्रीराम जन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण से है, यह मात्र एक मन्दिर निर्माण का कार्य नहीं है वरन् भारत की अपनी संस्कृति व अपनी परम्परा तथा यशस्वी पूर्वजों के प्रति सम्मान भाव की परिणति है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूर्व महन्तद्वय ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ एवं राष्ट्रसंत महन्त अवेद्यनाथ के संकल्पो की सिद्धि भी मन्दिर शुभारम्भ के साथ हुई जो भारत में राम राज्य की स्थापना के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किये थे।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता महात्मां गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र के कुलपति प्रो0 रजनीश शुक्ल ने कहा कि विश्व में वास्तिवक कलिकाल का उदय तब हुआ जब इस देश में जन-जन के आराध्य भगवान श्रीराम का आवास तोड़ा गया। भगवान श्रीराम का मन्दिर तोड़ा जाना तथा भारत के लोगों को भारतीयता से षडयंत्र पूर्वक विमुख करने के लिए जो कुतस्ति प्रयास हुआ वह अत्यन्त निन्दनीय है।

उन्होंने कहा कि भारत की भारतीयता को नष्ट भ्रष्ट करने, रामजन्म भूमि पर अपलाप करके राम विहिन भारत बनाने का जो षडयंत्र रचा गया, उसके फलस्वरूप भारत सचमुच अपनी भारतीय संस्कृति व राम के आदर्शों को भूलकर राजा विहिन प्रजा की तरह दिशा विहिन हो गया था। यह 2020 का वर्ष उस युग के समाप्ति का वर्ष है। उन्होंने कहा कि 492 साल के लंबे वनवास के बाद अयोध्या में विवाद मुक्त और शांति युक्त श्रीराम मन्दिर के निर्माण की स्थापना के कारण पुनः सम्पूर्ण भारत के साथ-साथ पूरे विश्व को शांति का मार्ग दिखाने का वर्ष है।

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प्रो0 शुक्ल ने कहा कि जो राम साक्षात् न्याय, करूणा धर्म तथा शांति के शाश्वत विग्रह स्वरूप हैं। उन राम के मन्दिर का शुभारम्भ भी उच्चतम न्यायालय के निर्णय के उपरान्त समरसता व शांति के साथ होता है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से सर्वेश्वर श्रीराम की इच्छा ही है कि जिस समय भव्य राम मन्दिर के निर्माण के लिए सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आता है उस समय उत्तर प्रदेश का नेतृत्व उसी गोरक्षपीठ को प्राप्त है जो रामलला के प्राक्ट्य से लेकर जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन तक निरन्तर पूरे सनातन हिन्दू समाज का नेतृत्व किया।

विशिष्ट वक्ता भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के निदेशक (शोध एवं प्रशासन) डाॅ0 ओम जी उपाध्याय ने कहा कि भगवान श्रीराम और भारत एक दूसरे के पर्याय हैं। श्रीराम की चेतना ही भारत की चेतना है। श्रीराम के आदर्श ही भारत के आदर्श हैं। श्रीराम का चरित्र ही सम्पूर्ण भारत का चरित्र है इसलिए निश्चित ही श्रीराम मन्दिर के निर्माण से भारत के नये युग आ आरम्भ है।

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उन्होंने कहा कि पांच अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जब श्रीराम के भव्य मन्दिर का शिलान्यास किया तो भारत के राजनीति व चरित्र की नई परिभाषा लिखी गई। उन्होंने कहा कि कहने के लिए भारत धर्म निरपेक्ष था लेकिन भारत की राजनीति केवल तुष्टीकरण पर ही आधारित रही। अब भारत नकली धर्म निरपेक्षता से मुक्त हो गया।

मुख्य अतिथि अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु स्वामी राघवाचार्य ने कहा कि श्रीराम मन्दिर निर्माण का शुभारम्भ निश्चित ही नये युग का आरम्भ है। आजादी के बाद से हम सिर्फ पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण व अनुकरण करने में ही अपनी भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे थे। भगवान श्रीराम भारत के प्रतीक व पहचान हैं।

उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति राममय होकर ही उनके आदर्शों पर चलकर सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की बात करती है। निश्चित ही श्रीराम मन्दिर निर्माण से भारतीय संस्कृति में उनके आदर्शों की स्थापना हो सकेगी।

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