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देश की एकता और अखंडता के लिए गोरक्षपीठ ने आजीवन प्रयास किया : सुशील पंडित

Desk by Desk
24/08/2020
in Main Slider, उत्तर प्रदेश, ख़ास खबर, गोरखपुर, राजनीति
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सुशील पंडित

सुशील पंडित

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गोरखपुर। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन और मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं कश्मीर मामलों के जानकर सुशील पण्डित ने कहा कि गोरक्षपीठ और उसके पीठाधीश्वरों ने राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए आजीवन प्रयास किया है।

श्री पण्डित रविवार को यहां ब्रहमलीन महंत दिग्विजयनाथ की 51 वीं तथा राष्ट्र सन्त ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ की छठवीं पुण्यतिथि की पावन स्मृति में महाराणाप्रताप स्नात्कोत्तर महाविद्यालय में आयोजित सप्तदिवसीय व्याख्यानमाला के समपान अवसर पर कश्मीर: कल आजकल और कल विषय पर कहा कि गोरक्षपीठ और उसके पीठाधीश्वरों ने राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए आजीवन प्रयास किया और अभी भी कर रहे है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति के संरक्षण और संर्वद्धन में नाथपंथ के पीठाधिपतियों का विशेष योग दान रहा है।

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उन्होंने कहा कि विदेशी आक्रान्ताओं एवं उनके होने वाले निरन्तर प्रहारों से नित संकुचित होती हुई भारतीय परम्परा, जीवन मूल्य एवं संस्कृति को नाथ योगियों ने सुरक्षित किया। नाथ सम्प्रदाय का सम्बन्ध भारत के अन्य भू-ंभागों की ही भांति कश्मीर से भी रहा है। उन्होंने कहा कि परम्परा कहती है कि बाबा अमरनाथ की यात्रा में नाथपंथी योगी बड़ी संख्या में वहां जाते थे और प्रवास करते थे और आज भी वहां बड़ी संख्या में ऐसे स्थल विद्यमान है, जो नाथ पंथी साधको के प्रवास स्थल रहे थे।

श्री पण्डित ने कहा कि यह कश्मीर का दुर्भाग्य है कि आज नाथपंथी समुदाय वहां नही है और यही कारण है कि आज कश्मीर भारतीय परम्परा और संस्कृति से दूर हाे गया है। उन्होंने कहा कि बिहार जब बिहार नहीं था, बंगाल जब बंगाल नहीं था, तमिलनाडु जब तमिलनाडु नहीं था और गुजरात जब गुजरात नहीं था, तब भी कश्मीर, कश्मीर ही था। उन्होंने कहा कि महाभारत में भी कश्मीर का उल्लेख है। पिछले दो हजार वर्षों से श्रीनगर का भी बिना किसी परिवर्तन के अस्तित्व बना हुआ है जबकि यह नगर आज लगभग हिन्दुओं से विहीन हो गया है।

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श्री पण्डित ने कहा कि महाभारत काल से कश्मीर का सम्बन्ध भारत के साहित्य, कला, स्थापत्य,मेधा एवं राजनीति से इस प्रकार रहा है कि बहुत से विद्वान कश्मीर को भारत की जननी मानते है। योग, पांचाग, कालगणना, दर्शन, गन्धर्वविद्या, मूर्तिकला, नृर्वयकला आदि सभी ज्ञान परम्पराओं का उद्गम स्थल रहा है। उन्होंने कहा कि कश्मीर के विवाद को आजभूमि विवाद के रूप में प्रस्तुत किया जाना गलत है। उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि शरणार्थी के रूप में आए हुए मुस्लिम धर्मानुयायियों ने अपनी कुटिल बुद्धि का प्रयोग करते हुए छल-कपट, हिंसा लालच आदि से सुनियोजित तरीकों से कश्मीर की सत्ता हथिया लिया।

उन्होंने कहा कि 370 के तहत मुस्लिम समाज के हितों को देखते हुए कश्मीर को अनेक विशेषाधिकार दे दिया। उन्होंने कहा कि आज कश्मीर से 370 औैर 35ए के अभिषाप से मुक्त हुआ है। जिस अनुच्छेद 370 की नींव पर जेहाद का किला टिका था वह नींव अब टूट चुकी है।

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श्री पण्डित ने कहा कि देश का वर्तमान नेतृत्व कश्मीर में बदलाव की बयार ला रहा है। आज का भारत दृढ इच्छा शक्ति वाला भारत है। उन्होंने कहा कि आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चार सदस्य भारत के इस कुशल नेतृत्व के साथ खड़े है। देश के नेतृत्व से अब यह उम्मीद बंधी है कि धारा 370 के जिस नींव पर जेहाद का किला खड़ा था अब वह पूर्णतः समाप्त हो जाएगा।

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