नई दिल्ली| रिजर्व बैंक की ओर से बैंकों को एकबारगी ऋण पुनर्गठन की अनुमति दिए जाने के बाद ऐसा माना जा रहा है कि बैंकों की अतिरिक्त धन की जरूरत कम हुई हैं और ऐसे में चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में नई पूंजी डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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उन्होंने कहा कि कर्ज की किस्तें चुकाने से दी गई छह महीने की छूट इस महीने समाप्त हो रही है। हालांकि, इसके बाद भी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में अचानक से इजाफा नहीं होगा, क्योंकि अब इसके बाद ऋण का पुनर्गठन होने वाला है। ऋण पुनर्गठन वाले खातों के लिये अलग से प्रावधान करने की जरूरतें भी काफी कम हैं। हालांकि, अधिकांश सरकारी बैंकों ने चालू वित्त वर्ष में जरूरत के हिसाब से टिअर-1 और टिअर-2 बांड से पूंजी जुटाने की अग्रिम मंजूरियां ले ली हैं।
सूत्रों ने कहा कि इन सब के बाद भी यदि कुछ बैंकों को चालू वित्त वर्ष के अंत तक नियामकीय पूंजी जरूरतें होती हैं, तो सरकार यह वैसे ही मुहैया करायेगी जैसा पहले करा चुकी है। सरकार ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के उद्देश्य से ऋण वितरण में तेजी लाने के लिए 2019-20 में सरकारी बैंकों में 70 हजार करोड़ रुपये डाले थे।
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ऐसे में बैंक ऋण पुनर्गठन कार्यक्रम के जरिये किस्तें चुकाने की अवधि बढ़ाकर, ब्याज दरें घटाकर अथवा किस्तें चुकाने से राहत की अवधि को विस्तार देकर ऐसे खातों को बचा सकते हैं। अधिकारी ने कहा कि इन सब के बाद भी कुछ ऋण खाते एनपीए हो जायेंगे, खासकर वे खाते जो महामारी से पहले से ही चुनौतियों से जूझ रहे हैं। बैंक इस संकट का सामना करने की तैयारी कर रहे हैं।