प्रदोष (Pradosh) व्रत बेहद पुण्यदायक माना जाता है। प्रदोष तिथि के दिन संध्या पूजन विशेष तौर पर फलदायक मानी जाती है। एक महीने में 2 बार प्रदोष का व्रत रखा जाता है। वहीं, अक्टूबर के महीने में दूसरा और आखिरी प्रदोष व्रत कल रखा जाएगा। गुरुवार के दिन पड़ने के कारणं इसे गुरु प्रदोष (Guru Pradosh) व्रत के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत पूजा के शुभ मुहूर्त, विधि, कथा व सबकुछ-
प्रदोष (Pradosh) शुभ मुहूर्त-
शुक्ल त्रयोदशी तिथि शुरुआत- सुबह 09 बजकर 44 मिनट, 26 अक्टूबर
शुक्ल त्रयोदशी तिथि समाप्ति- सुबह 06 बजकर 56 मिनट, 27 अक्टूबर
संध्या पूजा मुहूर्त- शाम 05 बजकर 42 मिनट – रात 08 बजकर 14 मिनट तक
प्रदोष (Pradosh) पूजा विधि
स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें। शिव परिवार सहित सभी देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करें। अगर व्रत रखना है तो हाथ में पवित्र जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत रखने का संकल्प लें। फिर संध्या के समय घर के मंदिर में गोधूलि बेला में दीपक जलाएं। फिर शिव मंदिर में भगवान शिव का संभव हो तो पंचामृत से अभिषेक करें और शिव परिवार की विधिवत पूजा-अर्चना करें। अब प्रदोष व्रत की कथा सुनें। फिर घी के दीपक से पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आरती करें। ओम नमः शिवाय का मंत्र-जाप करें। अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।
शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं?
कच्चा दूध
घी
दही
कनेर के फूल
फल
अक्षत
बेलपत्र
धतूरा
भांग
शहद
गंगाजल
सफेद चंदन
काला तिल
हरी मूंग की दाल
शमी पत्ते
कलावा