हाथरस केस का इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वतः संज्ञान लिया था, जिसपर सोमवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रशासन से नाराजगी जताई। कोर्ट ने एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार से कहा कि अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप बिना देखे अंतिम संस्कार होने देते? एडीजी लॉ एंड ऑर्डर कोर्ट के इस सवाल पर चुप हो गए। उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।
हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद बाहर आई पीड़िता के परिजनों की वकील सीमा कुशवाहा ने यह जानकारी दी। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार बोल रहे हैं कि एफएसएल की रिपोर्ट में सीमन नहीं आया है। एडीजी को लॉ की डेफिनेशन पढ़नी चाहिए। पीड़िता के परिजनों की वकील ने एडीजी को रेप की परिभाषा पढ़ने की सलाह दी और कहा कि मेरे पास सारी रिपोर्ट आ चुकी है। उन्होंने कहा कि जज ने जब क्रॉस क्वेश्चन किए, तब प्रशासनिक अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं था।
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पीड़िता के परिजनों की वकील ने बेहतर की उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा कि जिस तरीके से बेंच का और जज का रुख था, लगता है कि एक अच्छा संदेश समाज में जाएगा। उन्होंने कहा कि डीएम को लेकर पीड़िता की भाभी ने कोर्ट को बताया कि इन्होंने कहा था कि अगर आपकी बेटी कोरोना से मर जाती तो आपको इतना मुआवजा नहीं मिलता।
वकील के मुताबिक जज ने इस पर डीएम से सवाल किया कि अगर किसी पैसे वाले की बेटी होती तो क्या आप ऐसे ही हिम्मत करते उसे इस तरीके से जलाने की? जिस तरह से बड़े व्यावसायिक घरानों के लोगों को एक वोट का अधिकार है, वैसे ही दलित और अन्य सभी लोगों को भी वोट का अधिकार संविधान ने दिया है।
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सीमा कुशवाहा ने कहा कि देश में हर समुदाय के लोगों का मानवाधिकार है। इसका उल्लंघन कैसे किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अंतिम संस्कार में गंगाजल होता है। गंगा मां का पवित्र जल छिड़का जाता है। आप केरोसिन डालकर उस बेटी को जला रहे हैं। ये मानवाधिकार का उल्लंघन है। जब लोगों ने अंतिम संस्कार कर लिया तब संदेशा भिजवाया और वहां पर कुछ लोग गए। फिर वीडियो बनाया।
वकील सीमा कुशवाहा ने 2 नवंबर को अगली सुनवाई से पहले कोर्ट में हलफनामा दायर करने की बात कही और कहा कि इसमें सारी बातें बताएंगी, लेकिन इस संबंध में मीडिया से कोई बात नहीं करेंगी। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि हमने कोर्ट से तीन आग्रह किए, जिसे कोर्ट ने कंसीडर किया। हमारा पहला आग्रह था कि केस को ट्रांसफर किया जाए। जांच जारी रहने तक केस ट्रांसफर नहीं किया जा सकता, ऐसे में जांच के बाद केस ट्रांसफर होगा। जांच से जुड़े तथ्य मीडिया में न आएं. इसे भी कोर्ट ने माना. पीड़ित पक्ष की वकील के मुताबिक ट्रायल चलने तक पीड़ित पक्ष को सुरक्षा देने का भी कोर्ट में आग्रह किया गया।