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आज संकष्टी चतुर्थी पर सुने ये कथा, गणपती दूर करेंगे सभी संकट

Sankashti Chaturthi

Sankashti Chaturthi

साल की अंतिम संकष्टी चतुर्थी 22 दिसंबर को यानी आज मनाई जा रही है। इस दिन गणेश भगवान के लिए व्रत रखा जाता है और विधिवत पूजा की जाती है।

भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी परेशानियों को हर लेते हैं इसीलिए इन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है। संकष्टी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन इसकी कथा सुनने से गणपति की कृपा प्राप्त होती है।

शुभ मुहूर्त

पूजा मुहूर्त- रात्रि 08 बजकर 15 मिनट से, रात्रि 09 बजकर 15 मिनट तक (अमृत काल)

चंद्र दर्शन मुहूर्त-  रात्रि 08 बजकर 30 मिनट से, रात्रि 09 बजकर 30 मिनट तक

पूजा विधि

स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें। इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है। गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी, धूप, चन्दन , प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें। गणेश जी  को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें। संकष्टी को भगवान गणेश  को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चांद देखने के बाद व्रत खोलें।

व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माता पार्वती की चौपड़ खेलने की इच्छा हुई लेकिन वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो इस खेल में निर्णायक भूमिका निभाए। समस्या का समाधान करते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी। शिव-पार्वती ने मिट्टी से बने बालक को खेल देखकर सही फैसला लेने का आदेश दिया। खेल में माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे रही थीं।

चलते खेल में एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। इससे नाराज माता पार्वती ने गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया। बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बार-बार क्षमा मांगी। बालक के निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय से श्राप से मुक्ति पाई जा सकती है। माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना।

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बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूरी श्रद्धापूर्वक संकष्टी का व्रत किया। उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी। बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा जताई। भगवान गणेश ने उस बालक को शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले। माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गयी होती हैं।

जब शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया और इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर कैलाश वापस लौट आती हैं।

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