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इतिहास अपने को दोहराता है, एक बार फिर दांडी मार्च

Desk by Desk
11/03/2021
in Main Slider, ख़ास खबर, नई दिल्ली, राजनीति, राष्ट्रीय
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एक बार फिर दांडी मार्च

एक बार फिर दांडी मार्च

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

इतिहास अपने को दोहराता है। इसके लिए वह बहाने तलाशता है और एक न एक दिन अपने मंसूबे में सफल भी हो जाता है। दांडी मार्च के 91 साल बाद जब हमारे-आपके सामने नया दांडी मार्च होगा तो कैसा लगेगा। हम उसमें कैसे फर्क करेंगे, ये सारे सवाल सहज ही मन मस्तिष्क में कौंधते हैं। वैसे यह तो बापू ने भी नहीं सोचा होगा कि उन्हीं के गृह प्रदेश गुजरात में दांडी मार्च जैसा कोई दूसरा मार्च भी होगा।

महात्मा गांधी के दांडी मार्च के 91 साल पूरे हों और देश में कोई बड़ा कार्यक्रम न हो, यह बात जमती नहीं है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 20 सप्ताह तक इस पर कड़ी मशक्कत की कि वह क्या कुछ नया कर सकती है। उसने बहुत सोच विचार कर एक आयोजन तय किया-स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ ।

हालांकि स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ 15 अगस्त 2022 को पड़ रही है, इसलिए उसने तर्क दिया कि 15 अगस्त 2022 को आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के पहले 75 सप्ताह की अवधि 12 मार्च से आरंभ हो रही है, इसलिए अमृत महोत्सव की शुरुआत 12 मार्च से होगी। इस कार्यक्रम के तहत देश भर में 164 कार्यक्रम होंगे जिसमें 94 अकेले गुजरात में होंगे। साबरमती आश्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दांडी मार्च की शुरुआत करेंगे। अगर सरकार अमृत महोत्सव की बजाय दांडी मार्च पर ही आत्मकेंद्रित होती तो उसे जवाब नहीं देने होते।

महात्मा गांधी ने नमक पर लगे कर को समाप्त कराने के लिए 78 लोगों के साथ 25 दिनों तक दांडी मार्च किया था और इसी के साथ उनका एक साल का सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ हो गया था। सवाल यह है कि गांधी जी के सामने तो सुस्पष्ट लक्ष्य था लेकिन केंद्र सरकार इस तरह के आयोजन क्यों कर रही है, यह तो इस देश की जनता को जानना ही चाहिए। कांग्रेस ने भी दावा किया है कि वह गुजरात में सत्याग्रह करेगी लेकिन क्यों?

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बकौल केन्द्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल, वे 12 मार्च से 16 मार्च तक को साबरमती आश्रम से नाडियाड तक 75 किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साबरमती आश्रम में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में इंडिया एट 75 का प्रतीक चिह्न एवं वेबसाइट जारी करेंगे। वह वोकल फॉर लोकल के लिए चरखा अभियान, आत्मनिर्भर इनक्यूबेटर का शुभारंभ करने के बाद पदयात्रा को हरी झंडी दिखा कर रवाना करेंगे। इसमें 81 युवकों का एक दल साबरमती से दांडी तक जाएगा।

संस्कृति मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र एवं ट्राइफेड देश के 36 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के 164 स्थानों पर इंडिया एट 75 के विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करेगा। इसके अलावा 20 स्थानों दिल्ली, शिमला, सीवान, पटना, नीलगंज , झांसी, लखनऊ, सारनाथ, जबलपुर, पुणे, दीग महल राजस्थान, पोरबंदर, गोवा, वेल्लोर, तमिलनाडु, तिरुपति, संकरम आंध्रप्रदेश, हम्पी ,त्रिचूर , अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट, बारामूला एवं सांबा (जम्मू कश्मीर), करगिल एवं लेह (लद्दाख), गंगटोक आदि में विशेष कार्यक्रम आयोजित होंगे।

बकौल पटेल, इस पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा 20 सप्ताह की कड़ी मशक्कत के बाद तैयार की गयी है। दांडी मार्च दुनिया के दस बड़े आंदोलनों में से एक है। निश्चित तौर पर सरकार की मंशा इस बहाने गांधी जी के अवदान को याद करने की है लेकिन इसके लिए दांडी मार्च की जरूररत क्यों पड़ गई। आजादी के इन 34 सालों में तो इस तरह की जरूरत किसी भी राजनीतिक दल ने महसूस नहीं की।

अचानक सरकार को दांडी मार्च निकालने की आवश्यकता क्यों पड़ गई। उसे तो कोई कानून तोड़ना नहीं। नमक की जीवन में बहुत प्रासंगिकता है। उसके बिना भोजन नीरस लगता है। लवण बिना बहु बिंजन जैसे। इस लिहाज से उसे अमृत कहा जाता है लेकिन नमक ज्यादा हो तब भी और कम हो तब भी शरीर को नुकसान ही होता है। चुटकी भर नमक का खाद्य अनुशासन ही भारत क्या, पूरी धरती पर मान्य है। पहले लोग जिसका नमक खाते थे, उसका अहित नहीं करते थे। अब तो डकैत पहले घर में घुसकर भोजन करते हैं और फिर लूटपाट करते हैं। नमकहरामी इस स्तर पर पहुंच गई है।

पहले मुंह खाता था और आंखें लजाती थीं। इस पर मुहावरे भी बने हैं लेकिन अब समाज से ही शर्मो हया समाप्त हो चली है। ऐसे में नमक की तो बात ही न की जाए, इसी में भलाई है। जाहिरा तौर पर यह सारा कार्यक्रम गांधी जी को सम्मान देने के लिए बनाया गया है। साबरमती आश्रम के आस-पास किसी तरह की व्यावसायिक गतिविधि न चले, ऐसी सरकार की मंशा है। वह साबरमती आश्रम को हेरिटेज बनाना चाहती है। वहां पांच म्यूजियम बनवाना चाहती है जिससे कि लोग गांधी को जान सकें।

दांडी मार्च के दौरान महात्मा गांधी ने कहा था कि अकेले सत्याग्रही को भी कोई तब तक हरा नहीं सकता जब तक कि उसे सत्य और अहिंसा का संबल मिलता रहे। आज आंदोलनों पर कितना खर्च होता है। उससे देश को कितना नुकसान होता है, इस पर भी विचार करना चाहिए। अतीत को याद रखना अच्छी बात है लेकिन जब उसे ओढ़ने-बिछाने की नौबत आ जाए तो उस पर विचार जरूर किया जाना चाहिए। गांधी जी को याद किया जाना चाहिए लेकिन कोरोना के संक्रमण को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सरकार का तर्क हो सकता है कि दांडी मार्च में तो 81 कार्यकर्ता ही भाग ले रहे हैं। गांधी जी ने भी तो 78 लोगों के साथ ही दांडी मार्च आरंभ किया था लेकिन जेल गए थे पूरे 80 हजार। एक-एक ग्यारह होते हैं। इस बात को सरकार को भूलना नहीं चाहिए।

सरकार को लोकरंजन करना चाहिए लेकिन लोकस्वास्थ्य को भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। देश में जिस तरह कोरोना के नए मामले आ रहे हैं, उनमें गुजरात भी अछूता नहीं है, ऐसे में इस तरह के कार्यक्रम सोच विचार कर ही बनाए जाने चाहिए और जो दल सत्याग्रह पर विचार कर रहे हैं, उन्हें भी सोचना चाहिए कि आजादी के बाद से आज तक उन्होंने सत्याग्रह क्यों नहीं किया । यह जानते हुए भी कि गांधी की आंदोलन वाली विरासत तो उन्हीं के पास है। अतीत के मूल्यों से सीखना चाहिए लेकिन अतीत में उलझने की बजाय वर्तमान को गौरवशाली बनाने की दिशा में भी काम किया जाना चाहिए। कार्यक्रमों के नाम पर पैसों की बर्बादी तो नहीं ही होनी चाहिए, यही वक्त का तकाजा भी है।

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