देश में शराब (Liquor-Beer) की बिक्री लगातार बढ़ रही है, राज्य सरकारों की इससे झोली भरती है, अप्लीकेशन फीस, लाइसेंस चार्ज और फिर हर बोतल पर कमीशन यानी TAX से सरकार को मोटी कमाई होती है। राज्य सरकारें अपने हिसाब से आबकारी नीतियों पर बदलाव करती रहती हैं, ताकि पारदर्शिता के साथ-साथ सरकार की आय भी बढ़ती रहे।
इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश की आबकारी नीति वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए कई महत्वपूर्ण बदलावों के साथ लागू की गई है। उत्तर प्रदेश सरकार की मानें तो नई आबकारी नीति 2025-26 का उद्देश्य राजस्व बढ़ाना, शराब व्यापार में पारदर्शिता लाना और मिलावट को रोकना है। ई-लॉटरी के माध्यम से लाइसेंस आवंटन प्रक्रिया को निष्पक्ष और आसान बनाया गया है।
अगर उत्तर प्रदेश में आप शराब (Liquor-Beer) की दुकान का लाइसेंस लेना चाहते हैं तो आपको ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसकी पूरी जानकारी आपको आबकारी विभाग की वेबसाइट या जिला आबकारी विभाग से मिल जाएगी। लाइसेंस के लिए आवेदन उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग की आधिकारिक वेबसाइट (www,upexcise.in) पर ऑनलाइन जमा करना होगा।
एक अनुमान के मुताबिक वित्त-वर्ष 2024-25 के दौरान उत्तर प्रदेश में करीब 12533 शराब और बीयर दुकानें थीं। इनमें अंग्रेजी शराब की 6,563 और बीयर की 5970 दुकानें थीं। कंपोजिट दुकानों को लेकर आबकारी विभाग ने अंग्रेजी शराब और बीयर की दुकानों की कुल संख्या 9,362 कर दी है।
सरकार का दावा है कि शराब की दुकान (Liquor-Beer) का लाइसेंस प्रक्रिया को आसान और पारदर्शी बनाया गया है। उत्तर प्रदेश आबकारी नीति 2025-26 के अनुसार कंपोजिट दुकानों पर अंग्रेजी शराब, बीयर और वाइन की बिक्री एक साथ की जा सकेगी। यानी सूबे में कुल शराब की दुकानों की संख्या में जो कमी आई है, उसकी ये वजह है। पहले अंग्रेजी शराब, बीयर और वाइन की अलग-अलग दुकानें होती थीं, जिसे अब एकसाथ खोलने की अनुमति दे दी गई है, जिससे दुकानों की संख्या घटी है, यानी दुकानें बंद नहीं हुई हैं, विलय कर दिया गया है।
ई-लॉटरी सिस्टम से लाइसेंस का वितरण
उत्तर प्रदेश में शराब (देशी, विदेशी, बीयर) और भांग की दुकानों (Liquor-Beer) के लाइसेंस अब ई-लॉटरी के माध्यम से आवंटित किए जा रहे हैं। पुराने लाइसेंस का नवीनीकरण (रिन्यूवल) इस बार नहीं होगा। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2026-27 में लाइसेंस रिन्यूवल का विकल्प उपलब्ध होगा। एक व्यक्ति, फर्म या कंपनी पूरे प्रदेश में अधिकतम दो दुकानों का लाइसेंस प्राप्त कर सकती है। एक व्यक्ति को दो से अधिक दुकानों का लाइसेंस नहीं मिलेगा, जिससे शराब व्यापार में एकाधिकार (मोनोपॉली) को रोका जा सके।
कंपोजिट दुकान किसे कहते हैं?
इस आर्टिकल में ऊपर कंपोजिट दुकानों का जिक्र है। दरअसल सूबे की सरकार ने पहली बार ‘कंपोजिट शॉप्स’ का नया विकल्प दिया है। जहां एक ही दुकान पर देशी शराब, विदेशी शराब, बीयर और वाइन बेची जा सकती है। इससे पहले बीयर की दुकानें अलग थीं। अभी भी इन दुकानों पर शराब पीने की अनुमति नहीं होगी। हालांकि ग्राहकों को शराब पीने की सुविधा देने के लिए कंपोजिट दुकानों को मॉडल शॉप में परिवर्तित किया जा सकेगा। इसके लिए अलग से शुल्क देना पड़ेगा। मॉल या मल्टीप्लेक्स में प्रीमियम दुकानें खोलने की अनुमति नहीं है। लेकिन हवाई अड्डों, मेट्रो और रेलवे स्टेशनों पर अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) के साथ खोली जा सकती हैं।
प्रोसेसिंग शुल्क यानी आवदेन शुल्क (ये रकम वापस नहीं की जाएगी):
देशी शराब की दुकान: 65,000 रुपये
कंपोजिट दुकान: 90,000 रुपये
मॉडल शॉप: 1,00,000 रुपये
भांग की दुकान: 25,000 रुपये
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में आबकारी नीति 2025-26 के तहत करीब 1,987।19 करोड़ रुपये प्रोसेसिंग शुल्क के रूप में जमा हुए थे। यह शुल्क गैर-वापसी योग्य है, यानी ये वापस नहीं किए गए। सरकार को केवल अप्लीकेशन से करीब 2000 करोड़ रुपये की कमाई हुई। बता दें, यूपी आबकारी विभाग चार श्रेणियों में 27,308 शराब की दुकानों के लिए ऑनलाइन लॉटरी आयोजित की थी, लॉटरी में 2 लाख से ज्यादा आवेदन आए थे, जिनमें औसतन प्रति दुकान के लिए 15 आवेदक थे। सबसे ज्यादा आवेदन मिश्रित शराब (Composite Liquor) की दुकानों के लिए मिले, ग्रेटर नोएडा में एक दुकान के लिए 265 आवेदन प्राप्त मिले। राज्य में 1 अप्रैल 2025 से नई आबकारी नीति लागू हो गई है।
अगर आप उत्तर प्रदेश में कंपोजिट दुकान के लिए आवेदन करते हैं, तो आपको कुल 90,000 रुपये प्रोसेसिंग शुल्क या आवेदन शुल्क के तौर जमा करना होगा, और ये किसी भी स्थिति में वापस नहीं किया जाएगा। भले ही आपका आवेदन अस्वीकार हो जाए, आप लॉटरी में चयनित न हों, या आप बाद में प्रक्रिया से हट जाएं। इसलिए नई आबकारी नीति को देखते हुए कह सकते हैं, अब केवल गंभीर आवेदक ही प्रक्रिया में भाग लें, और लाइसेंस मिले या ना मिले आवेदन शुल्क के तौर पर 25 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक चुकाने ही पड़ेंगे।
लाइसेंस पाने की योग्यता
आवेदक कम से कम 21 वर्ष का भारतीय नागरिक होना चाहिए। एक व्यक्ति केवल एक आवेदन कर सकता है, लेकिन विभिन्न दुकानों के लिए आवेदन संभव है। आवेदक का आपराधिक रिकॉर्ड साफ होना चाहिए। परिवार (पति/पत्नी, आश्रित पुत्र, अविवाहित पुत्रियां, आश्रित माता-पिता) के सदस्यों को अलग-अलग आवेदन करने की अनुमति है।
आवेदन के लिए ये दस्तावेज जरूरी-
– पहचान पत्र (आधार कार्ड, वोटर आईडी)
– आयकर रिटर्न (पिछले तीन वर्ष का)
– शपथ पत्र (ई-लॉटरी आवेदन के साथ)
– प्रोसेसिंग शुल्क का भुगतान रसीद
– अन्य दस्तावेज- निवास प्रमाण पत्र और बैंक विवरण।
सभी पात्र आवेदनों की जांच जिला आबकारी अधिकारी द्वारा की जाती है। लॉटरी माध्यम से चयन के बाद आवेदकों को ईमेल और SMS के माध्यम से सूचित किया जाता है। परिणाम आबकारी विभाग की वेबसाइट पर भी उपलब्ध होते हैं।
नई आबकारी नीति में ये बदलाव भी:
– चयन के बाद, लाइसेंस शुल्क (254-260 रुपये प्रति लीटर) और अन्य शुल्क जमा करना होगा।
– देशी शराब अब एसेप्टिक ब्रिक पैक (टेट्रा पैक) में उपलब्ध होगी, जिससे मिलावट की संभावना कम होगी।
– सूबे के प्रत्येक जिले में फल आधारित शराब (फ्रूट वाइन) की एक दुकान होगी। मंडल मुख्यालयों पर लाइसेंस शुल्क 50,000 रुपये और अन्य जिला मुख्यालयों पर 30,000 रुपये है।
– सभी दुकानों पर दो CCTV कैमरे और जियो-फेंसिंग अनिवार्य होगी।
– शराब की दुकानें सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक खुली रहेंगी।
– स्टॉक और बिक्री का दैनिक विवरण आबकारी विभाग के पोर्टल पर अपलोड करना होगा।
घर में शराब रखने को लेकर ये नियम
घर में शराब और बीयर की कलेक्शन रखने वालों के लिए भी नियम बदल गया है। सरकार की मानें तो निजी उपयोग के लिए निर्धारित सीमा से अधिक शराब खरीदने, लेकर सफर करने पर, या रखने के लिए होम लाइसेंस की प्रक्रिया सरल की गई है। इसके लिए 11,000 रुपये वार्षिक शुल्क और 11,000 रुपये सिक्योरिटी राशि तय की गई है।
यूपी सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में शराब, बीयर, वाइन और भांग की बिक्री से 60,000 करोड़ रुपये से ज्यादा राजस्व का लक्ष्य रखा है। पिछले वित्त वर्ष यानी 2024-25 में आबकारी विभाग रिकॉर्ड 52,575 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने में सफल रहा। सरकार का कहना है कि नई आबकारी नीति और लॉटरी सिस्टम की वजह से राजस्व पिछले 5 साल में दोगुना हो गया। जहां 2018-19 में शराब से होने वाला राजस्व 23,927 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 में बढ़कर 52,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।