समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 2015 में काशी में गणेश मूर्ति विसर्जन को लेकर हुए विवाद में साधुओं पर लाठीचार्ज को लेकर माफी मांग ली है। उन्होंने कहा है कि आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगा।
उस समय लाठीचार्ज के शिकार हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सोमवार को बताया कि रविवार को हरिद्वार में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज व स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से अखिलेश यादव ने भेंट की। इस भेंट को लेकर सोशल मीडिया पर अविमुक्तेश्वरानंद व अखिलेश पर लोगों ने टिप्पणी की।
लोगों ने कहा कि जिसने लाठी साधुओं पर लाठी चलवाया, उसी से भेंट-मुलाकात चल रही है। साधुओं पर बरसाई गईं लाठियों को नहीं भूले हैं। सोशल मीडिया पर अपनी व अखिलेश की आलोचना होते देख अविमुक्तेश्वरानंद ने सोमवार को बयान जारी किया है। फेसबुक पर एक विस्तृत पोस्ट लिखते हुए उन्होंने कहा कि जब वे (अखिलेश) हमारे पास आये तो हम कुछ बोलते कि उसके पहले ही उन्होंने कहा कि ‘शरणागत हूं’। शरणागत की रक्षा करना ही धर्म है।
अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अखिलेश यादव स्वयं की पहल पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज का दर्शन करने हरिद्वार कुम्भ में आए थे। शंकराचार्य शिविर में आने पर ‘आगत का स्वागत’ सिद्धान्त के अनुसार शिविर के व्यवस्थापकों द्वारा सबकी तरह उनका भी स्वागत किया गया।
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उन्होंने कहा कि शरणागत की रक्षा ही धर्म है। यह सोचकर फिर हमने उनसे पुराने सन्दर्भ में कुछ न कहा और कुशल क्षेम पूछकर उन्हें श्री शंकराचार्य जी के पास ले गये। उन्होंने बताया कि अखिलेश ने पूर्व की गलती भविष्य में न होने का वचन दिया। अखिलेश ने कहा कि जो गलती हमसे पूर्व में हुई, अब वह भविष्य में नहीं होगी। उन्होंने माफी मांगी है।
अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि गलती किसी से भी हो सकती है। अपनी गलती को मानकर सुधार के लिये तत्पर होना महत्वपूर्ण है। श्री अखिलेश यादव ने यह जज्बा दिखाया है इसलिये हम उन्हें अब पुरानी बातें भूलकर नई ऊर्जा के साथ देश समाज की सेवा में लगने को कहते हैं। आशा है कि अब कभी उनके सत्ता में रहते हमारे देवविग्रहों और उनके प्रति आस्था रखने वालों की श्रद्धा का अवमान नहीं होगा।
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बता दें कि काशी स्थित गोदौलिया चौराहा पर 2015 में गंगा में गणेश मूर्ति विसर्जन को लेकर अविमुक्तेश्वरानंद अड़े रहे। गुस्साए प्रशासन ने श्रद्धालुओं पर जमकर लाठी बरसाई थी। पुलिस ने साधुओं को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था। बेरहमी से पीटे गए साधु-संतों के मामले पर उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री मूकदर्शक बने रहे।