हमीरपुर। देश आजाद होने के बाद जब वर्ष 1955 में ग्राम पंचायतों में चुनाव होने का सिलसिला शुरू हुआ तो उस जमाने में शासन और प्रशासन के पास चुनाव कराने की व्यवस्था ही नहीं थी। तब गांव में हाथ उठवाकर प्रधान चुने जाते थे। इसके बाद फिर मतपेटी और बैलेट पेपर के जरिये चुनाव होने लगे है। मौजूदा में गांवों में प्रधान के एक पद के लिये दर्जनों प्रत्याशी इन दिनों तपती धूप में चुनावी समर में पसीना बहा रहे है। घूंघट वाली महिलायें भी प्रधान बनने के लिये गांव की गलियों की खाक छान रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता मिथलेश द्विवेदी, पूर्व प्रधान बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी, कमल नारायण द्विवेदी सहित कई बुजुर्गों ने बताया कि 1947 में देश आजाद होने के 8 साल बाद 1955 में पंचायतों के गठन का रास्ता साफ हुआ था। फिर भी गुप्त रूप से मतदान कराने की व्यवस्था न बन पाने से ग्राम सभा की खुली बैठक में हांथ उठाकर प्रधान चुनने की व्यवस्था के तहत चुनाव कराए गए थे। उस समय का माहौल अजीबोगरीब था गांवों में असरदार लोगों की तूती बोलती थी। तो प्रायः हर जगह गांव के दो या तीन प्रभावशाली लोग ही प्रत्याशी बने थे और उन्हीं में जनता के खुले समर्थन से प्रधान बन गए थे।
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अन्य साधारण लोग प्रधान की उम्मीदवारी का साहस ही नहीं जुटा पाए थे। सर्वप्रथम चुने गए प्रधानो का कार्यकाल 10 वर्ष चला था। 1955 से 1965 के अन्तराल में तत्कालीन सरकार की ओर से गुप्त चुनाव कराने की व्यवस्था बन गई थी तो 1965 में ग्राम पंचायत का दूसरा चुनाव मत पेटी और बैलेट के माध्यम से कराया गया। तब से यही व्यवस्था चली आ रही है। लोगों ने बताया कि तब का दौर कुछ और था चुनाव में सरकार का और प्रत्याशी क बेहद कम खर्च होता था और चुनाव हो जाया करते थे किंतु आज के दौर में चुनाव का खर्च बढ़ गया है।
चुनाव जीतने के लिये लोग अनाप शनाप पैसा खर्च करके जीत हासिल करने का प्रयास करते हैं। इसके बाद सरकारी खजाना से घर भरने मे तत्पर रहते हैं। वर्तमान समय में पंचायत चुनाव चुनाव चल रहा है तो गांव गांव प्रत्याशियों की भीड़ नजर आ रही है। लोग दारू मुर्गा के नाम पर लाखों रुपये बर्बाद करके वोट हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। हर कोई प्रधान पद की दौड़ में शामिल है।
प्रधान के पहले चुने जाते थे मुखिया
गावों में 1947 और 1955 के बीच जब प्रधान नहीं चुने जाते थे। उस समय गांव गांव मुखिया चुने जाते थे। मुखिया का चुनाव भी हांथ उठाकर किया जाता था। बुजुर्ग लोग बताते हैं कि जो व्यक्ति मुखिया चुना जाता था वह गांव की जनता का प्रतिनिधित्व किया करते थे। लोगों के आपसी विवादों का निपटारा करना। लोगों की विभिन्न समस्याओं का समाधान करना सहित तमाम काम उन्हीं के दिशा निर्देशन हुआ करते थे। गांव के लोग उन्हें मुखिया साहब कहकर बुलाया करते थे।