नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन के बीच कई स्तरों की बातचीत हो चुकी है। इसके बाद भी चीनी सेना टकराव वाली जगहों से पीछे हटने को तैयार नहीं है। चीनी सेना पैंगोंग सो, गोगरा हॉट स्प्रिंग्स जैसे इलाकों में अभी भी जमी हुई है। ऐसे में भारतीय सेना ने भी फैसला लिया है कि वह कुंगरांग नदी के पास तब तक रहेंगे, जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति कायम नहीं हो जाएगी।
भले ही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की लद्दाख और कब्जे वाले अक्साई चिन इलाके में हवाई गतिविधियां खत्म हो गई हैं, लेकिन चीनी सेना 1597 किलोमीटर लंबी एलएसी पर लद्दाख में कुछ जगह पर मौजूद है। डि-एस्केलेशन के कोई भी संकेत नहीं दे रही है। एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर ने कहा कि दोनों ही टकराव वाली जगह पर चीन का इरादा सीमा के उल्लंघन को घुसपैठ में बदलने का है, तो भारतीय सेना को भी उसी की भाषा में जवाब देने का निर्देश मिला है। फिर चाहे क्यों न फॉरवर्ड पॉजिशंस पर ही क्यों न बैठना पड़े?
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राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों का स्पष्ट कहना है कि मई महीने में चीनी सेना द्वारा लद्दाख क्षेत्र में आने के फैसले को शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले चीनी केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) की मंजूरी मिली थी। इसमें तिब्बत के साथ-साथ शिनजियांग सैन्य जिले के सैनिक भी शामिल थे।
चीन के विस्तारवाद को खत्म करने के लिए भारतीय सेना ने 1984 के ऑपरेशन मेघदूत के जरिए साल्टोरो रिज और सियाचिन ग्लेशियर पर दावा किया। भारतीय राजदूत ने कहा कि हम वर्ष 1984 से ही ऊंचाइयों पर बैठ रहे हैं। 36 साल के बाद भी, भारतीय जवान सियाचिन ग्लेशियर को पाकिस्तान हमले से बचाने के लिए ऊंचाई वाली जगह पर बैठ रही है। एलएसी पर जमीनी स्थिति में कोई भी एकतरफा बदलाव भारतीय सेना को अस्वीकार्य है।
सैन्य और राजनयिक दोनों स्तरों पर कई बैठकों के बावजूद, चीन एलएसी पर अपने पदों और आसन पर अडिग है। सभी बातचीत पर शायद ही कोई प्रगति दिखा रहा है।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में स्पष्ट किया है कि भारत पाकिस्तान की सीमा वाली एलएसी से लेकर चीन की सीमा एलओसी, दोनों पर पूरी तरह से तैयार है। पीएम मोदी का यह भाषण दोनों पड़ोसियों के लिए भी संकेत है कि भारत पीछे नहीं हटेगा।