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पेट्रोल-डीजल को अगले 8 से 10 सालों तक जीएसटी में लाना संभव नहीं: सुशील मोदी

सुशील मोदी

नई दिल्ली। एक ओर जहां बढ़ते पेट्रोल और डीजल के दाम से जनता परेशान है। तो वहीं दूसरी ओर राज्यसभा में भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अगले आठ से 10 सालों तक पेट्रोल व डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाना संभव नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे राज्यों को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा।

 

बता दें कि इससे पहले मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि जीएसटी परिषद की अगली बैठक में पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के सुझाव पर चर्चा होगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में वित्त विधेयक 2021 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा था कि पेट्रोल, डीजल पर केंद्र के साथ-साथ राज्यों में भी कर लगाया जाता है।

वहीं केंद्र सरकार अपने कर संग्रह में से राज्यों को भी उनका हिस्सा देती है। उन्होंने कहा कि जीएसटी परिषद की अगली बैठक में यदि इस पर चर्चा होती है तो इसे एजेंडा में शामिल करने और इस पर चर्चा करने पर मुझे प्रसन्नता होगी। जीएसटी के मामले में जीएसटी परिषद सर्वोच्च नीति निर्णय लेने वाली संस्था है। वित्त मंत्री जीएसटी परिषद का नेतृत्व करतीं हैं जबकि राज्यों के वित्त मंत्री इसके सदस्य हैं।

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आज सुशील कुमार मोदी ने उच्च सदन में वित्त विधेयक, 2021 पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और राज्यों को सामूहिक रूप से पांच लाख करोड़ रुपये मिलते हैं। मोदी का यह बयान बेहद अहम है क्योंकि बीते दिनों पेट्रोल और डीजल की कीमतों ने आसमान छुआ। 24 दिनों के बाद आज सरकारी तेल कंपनियों की ओर से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव हुआ है। डीजल 17 और पेट्रोल 18 पैसे सस्ता हुआ है। लेकिन तेल की कीमत अब भी बहुत ज्यादा है। आम लोग और विपक्ष इसका विरोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि उच्च टैक्स की वजह से देश में तेल की कीमत अधिक है।

भाजपा नेता ने पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाए जाने की मांग को अव्यवहारिक बताया और कहा कि इससे राज्यों को करीब दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। उसकी भरपाई कैसे होगी। मौजूदा समय में जीएसटी में कर की अधिकतम दर 28 फीसदी है। अभी की स्थिति में 100 रुपये में 60 रुपये कर के होते हैं। इन 60 रुपयों में से केंद्र सरकार को 35 रुपये मिलते हैं और राज्यों को 25 रुपये मिलते हैं। इसके अतिरिक्त केंद्र के 35 रुपये का 42 फीसदी हिस्सा भी राज्यों को ही मिलता है।

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