Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

BJP-RLD गठबंधन पर लगी मुहर, इतनी सीटों पर बन गया सहमति का फॉर्मूला!

Jayant Chaudhary

RLD leader Jayant Chaudhary

नई दिल्ली। कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के यूपी में एंट्री से पहले इंडिया ब्लॉक को बड़ा झटका लगना तय हो गया है। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी और आरएलडी के बीच अलायंस (BJP-RLD Alliance) के फॉर्मूले पर लगभग सहमति बन गई है। किसी भी वक्त सीट अलायंस का ऐलान किया जा सकता है। बीजेपी और आरएलडी के शीर्ष नेतृत्व के बीच लंबे समय से बातचीत चल रही है। इसके पॉजिटिव नतीजे आने भी शुरू हो गए हैं।

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी और आरएलडी में गठबंधन तय हो गया है। आरएलडी 2 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ये दो सीटें बागपत और बिजनोर होंगी। इसके अलावा, जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary)  की पार्टी RLD को एक राज्यसभा सीट भी दी जाएगी। दोनों दलों के बीच गठबंधन का ऐलान दो से तीन दिन में हो जाएगा।

लगातार दो चुनाव से हार रही है RLD

पश्चिमी यूपी को जाट, किसान और मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है। यहां लोकसभा की कुल 27 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि 8 सीटों पर विपक्षी गठबंधन ने कब्जा किया था। इनमें 4 सपा और 4 बसपा के खाते में आई थी। लेकिन, आरएलडी को किसी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी। यहां तक कि जयंत (Jayant Chaudhary) को पश्चिमी यूपी में जाट समाज का भी साथ नहीं मिला था। यही नहीं, 2014 के चुनाव में भी जयंत को निराशा हाथ लगी थी और एक भी सीट नहीं मिली थी।

‘जयंत चौधरी हमारे साथ हैं’, RLD-BJP गठबंधन की अटकलों के बीच शिवपाल यादव का दावा

2019 के आम चुनाव में जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) की पार्टी RLD ने सपा-बसपा के साथ गठबंधन में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीनों सीटों पर दूसरे नंबर पर आई थी। जयंत चौधरी अपने पुश्तैनी क्षेत्र बागपत से चुनाव लड़े और बीजेपी के डॉ। सतपाल मलिक से 23 हजार वोटों से हार गए थे। मथुरा से आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमा मालिनी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह जाटों के लिए बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली मुजफ्फरनगर सीट से अजित सिंह पहली बार चुनाव लड़े थे और बीजेपी के संजीव बालियान से 6500 से ज्यादा वोटों से हार गए थे। अजित और जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) को सपा-बसपा के अलावा कांग्रेस का भी समर्थन मिला था। यह लगातार दूसरा आम चुनाव था, जब चौधरी परिवार को खाली हाथ रहना पड़ा था।

Exit mobile version