भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की बात उठते ही एक व्यक्ति का नाम सबकी जुबान पर आ जाता है, वो है मंगल पांडे का। आज मंगल पांडे की जयंती है। उनका जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। इस मौके पर हम आपको बताते हैं, भारत की स्वंतत्रता के लिए जान देने वाले इस अमर बलिदानी के जीवन से जुड़ी प्रमुख बातें।
मंगल पांडे के जन्मस्थान को लेकर मतभेद है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार मंगल पांडे का जन्म फैजाबाद के करीब हुआ था। वहीं कुछ लोगों के अनुसार वो ललितपुर के पास स्थित एक गांव में जन्मे थे। कुछ अन्य दावों के अनुसार मंगल पांडे की पैतृक भूमि बलिया थी। वैसे तो पूरे देश में 19 जुलाई को क्रांतिकारी मंगल पांडे की जयंती मनाई जाती है लेकिन उनके जन्म स्थान बलिया में 30 जनवरी को जयंती मनाई जाती है।
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मंगल पांडे 1850 के दशक में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नैटिव इन्फैंट्री की छठीं कंपनी में सिपाही के रूप में नियुक्त हुए थे। कोलकाता के निकट स्थित बैरकपुर स्थित ब्रिटिश छावनी में तैनात थे। आजादी की जंग में सबसे पहले अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजी हुकूमत के चूल हिलाने वाले शहीद मंगल पांडे में शुरू से ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का जज्बा था। उनके इसी जज्बे ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए बने आंदोलन में लोगों के अंदर स्वाभिमान जगाने का काम किया।
मंगल पांडे 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंम्पनी की सेना में भर्ती हुए। उस समय सेना में धर्म के अनुसार वेशभूषा में रहने की छूट थी, हिंदू सिपाहियों के लिए माथे पर तिलक लगाना और मुसलमान सिपाहियों को दाढ़ी रखना आम बात थी। उस समय सेना में अंग्रेजों की ओर से सैनिकों को ईसाई बनाने का कुचक्र चल रहा था।
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पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में एक फैक्ट्री थी,जहां कारतूस बनाए जाते थे, उस फैक्ट्री के अधिकांश कर्मचारी दलित समुदाय के थे। एक दिन प्यास लगने पर फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने सैनिक मंगल पांडे से एक लोटा पानी मांगा। उन्होंने यह कहकर पानी देने से मना कर दिया कि वह अछूत है। कर्मचारी को यह बात चुभ गई।
उसने मंगल पांडे से कहा कि उस समय तुम्हारा धर्म कहां रह जाता है, जब बंदूक में कारतूस डालने से पहले उसे दांत से तोड़ते हो। उस कारतूस पर गाय और सूअर की चर्बी लगी होती है। वह दलित कर्मचारी मातादीन था। जिसने भारतीय सैनिकों की आंखें खोल दी। इसके बाद मंगल पांडे अंग्रेजों से बदला लेने के लिए मौके की तलाश में लग गए। 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया और परेड ग्राउंड में ही बगावत कर अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतार दिया।
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तभी वहां कर्नल ह्वीलर पहुंचा, उसने सिपाहियों से मंगल पांडे को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन एक भी सैनिक आगे नहीं आया। बाद में मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया। फौजी अदालत में उन पर मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। बलिया के बैरकपुर स्थित परेड मैदान में फांसी का मंच बनाया गया सात अप्रैल को सुबह फांसी दी जानी थी, परंतु जल्लाद ने फांसी देने से मना कर दिया।
अंत में कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए और आठ अप्रैल को प्रात: 5:30 बजे मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया गया। मंगल पांडे के इस बलिदान ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया। इनके बलिदान के बाद जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत तेवर दिखाई देने लगे, जिसका परिणाम 15 अगस्त 1947 को सामने आया जब हमेशा के लिए अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए।