हिंदू धर्म में हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat)मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, 6 अक्टूबर को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाएगा। देश में कुछ स्थानों पर इस व्रत को जितिया (Jitiya Vrat) भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान के साथ रखने से विवाहित महिलाओं को पुण्य प्रताप की प्राप्ति होती है और संतान दीर्घायु होती है। इस व्रत के फलस्वरूप संतान तेजस्वी, ओजस्वी और मेधावी होती है। धार्मिक मान्यता है कि जो महिलाएं इस व्रत को रखती है, उनकी संतानों की रक्षा खुद भगवान श्रीकृष्ण करते हैं। यहां पंडित चंद्रशेखर मलतारे से जानें जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat)का धार्मिक महत्व, शुभ मुहूर्त और मंत्र।
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat)का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को आशीर्वाद देकर जीवित कर दिया था। यही कारण है कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के पुत्र को जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika Vrat) कहा गया था। इसी के फलस्वरूप हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है।
इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा
हिंदू पंचांग के मुताबिक, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर को प्रातः काल 06.34 मिनट से शुरू होगी और 7 अक्टूबर को सुबह 08.08 मिनट पर खत्म होगी। हिंदू पंचांग के मुताबिक, उदया तिथि के अनुसार 6 अक्टूबर को जितिया व्रत रखा जाना उचित होगा। जितिया व्रत के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.46 मिनट से दोपहर 12.33 मिनट तक है। 6 अक्टूबर को ही राहुकाल सुबह 10.41 मिनट से लेकर दोपहर 12.29 मिनट तक है।
इस मंत्र का करें जाप
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते,
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः