काल भैरव जयंती (Kalashtami), हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष काल भैरव जयंती 5 दिसंबर को है। सनातन धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान शिव ने अंधकासुर का वध करने के लिए काल भैरव का अवतार लिया था। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शाम को भगवान शिव ने काल भैरव देव का रूप धारण किया था।
भगवान शिव के रौद्र रूप, काल भैरव देव की पूजा करने से जीवन के व्याप्त सभी कष्ट, रोग, भय, काल और संकट दूर हो जाते हैं। इस दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। आइए, जानें रुद्राभिषेक का शुभ मुहूर्त और विधि।
कालाष्टमी (Kalashtami) शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 4 दिसंबर को रात 9 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी। यह तिथि 6 दिसंबर को रात 12:37 बजे समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मानी जाती है। इसलिए भक्त 5 दिसंबर को काल भैरव के लिए व्रत रख सकते हैं और पूजा कर सकते हैं।
रुद्राभिषेक के लिए शुभ समय
इस तिथि पर देवों के देव महादेव और जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा साथ रहेंगे। इस दौरान भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना बहुत शुभ होता है। शुभ समय पर भगवान शिव का अभिषेक करने से घर में सुख-समृद्धि का प्रवेश होता है।
काल भैरव जयंती (Kalashtami) की तिथि पर 6 दिसंबर की रात 12.37 बजे तक भगवान शिव, मां गौरी के साथ रहेंगे। काल भैरव देव की पूजा निशा काल में की जाती है। निशा काल में भी भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें।