खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टिकट कलेक्ट करने वाले लड़के ने सोचा होगा कि वो भारत का सफलतम कप्तान बन जाएगा। क्रिकेट से संन्यास ले चुके धोनी इस बारे में कहते हैं कि उनका ऐसा कोई सपना नहीं था। जहां से वो आते हैं वहां जीवन को एक-एक दिन करके जीते हैं।
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इसलिए सफर में उठाया हर छोटा कदम उनके लिए मायने रखता था न कि सिर्फ मंजिल। अपनी किताब टीम लोकतंत्र में वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई बताते हैं कि धोनी उस समय सिर्फ प्रमोशन पाने के लिए रेलवे में काम कर रहे थे। धोनी ने कहा, ‘ईमानदारी से कहूं तो मैं जब स्टेशन पर टिकट अलग अलग कर उन्हें सही से लगा रहा था तो मैं बस इतना सोचता था कि अब मैं प्रमोशन पाकर अगले ग्रेड में कैसे जाऊं।’
ये वो समय था, जब धोनी को आने वाले समय का अंदाजा भी नहीं था। उन्होंने ये सोचा तक नहीं था कि वो टीम इंडिया का कप्तान बनकर कई बड़े रिकॉर्ड अपने नाम करेंगे और क्रिकेट के इतिहास में उनका नाम हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा। लेकिन इतिहास बनाने वाले धोनी के इंटरनेशनल क्रिकेट में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है।
2003-2004 का क्रिकेट सीजन धोनी के लिए अहम रहने वाला था लेकिन भविष्य की बातों से अनजान धोनी के लिए यह समय करो या मरो वाला था। हालांकि, किस्मत धोनी के पक्ष में खड़ी थी। उस समय टैलेंड रिसोर्स डेवलपमेंट ऑफिसर रहे प्रकाश पोद्दार ने धोनी का एक मैच देखा जिसमें धोनी ने सिर्फ 29 रन बनाए। लेकिन इस छोटी सी पारी और अपनी विकेटकीपिंग से वह प्रकाश पोद्दार का दिल जीत चुके थे। पोद्दार ने मैच के बाद धोनी की रिपोर्ट दिलीप वेंगसरकर को भेजी, जो उस समय नेशनल टैलेंट स्कीम के चेयरमैन थे।
ये वो समय था जब टीम इंडिया के पास कोई बेहतरीन रेगुलर विकेटकीपर नहीं था। विकेटकीपर की कमी के कारण ‘द वॉल’ के नाम से मशहूर पूर्व भारतीय कप्तान राहुल द्रविड़ को कीपिंग करनी पड़ रही थी। लेकिन यहां समय करवट लेने वाला था। किरन मोरे ने धोनी का खेल देखने के बाद कहा, ‘धोनी हमारे सामने लगभग सभी जरूरतें पूरी करता दिख रहा था।’
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धोनी के सामने थे आशीष नेहरा जैसे तेज गेंदबाज लेकिन धोनी को इसकी परवाह ही कहां थी, वो तो अपनी तकदीर लिखने के लिए मैदान पर उतरे थे। धोनी ने इस मैच में कुल 47 गेंदों का सामना किया और 8 चौके व 1 छक्के की मदद से शानदार 60 रनों की पारी खेली।
उनके आक्रामक अंदाज और आत्मविश्वास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि उन्होंने आशीष नेहरा की पहली गेंद पर चौका और दूसरी गेंद पर छक्का जड़ दिया। उनकी इस परफॉर्मेंस से चयनकर्ताओं को लगा कि उन्हें टीम इंडिया के लिए एक रेगुलर विकेटकीपर बल्लेबाज मिल गया है।
इसके बाद 2004 में ही धोनी को इंडिया-A टीम के लिए चुन लिया गया। धोनी केन्या में तीन देशों के बीच होने वाली सीरीज के लिए पहुंचे और इस सीरीज में पाकिस्तान के खिलाफ दो मैचों में दो शतक लगाकर अपनी बल्लेबाजी का डंका बजा दिया। ये दोनों इनिंग्स उन्हें टीम इंडिया की नीली जर्सी दिलाने के लिए काफी थीं। इसके बाद दिसंबर 2004 में उन्हें टीम इंडिया में जगह मिली और वो महेंद्र सिंह धोनी से बन गए हमारे, आपके और सबके माही।