नई दिल्ली। देश के मशहूर शायर राहत इंदौरी का दिल का दौरा पड़ने से मंगलवार को निधन हो गया है। वह कोरोना वायरस से भी संक्रमित थे, जिसके उपचार के लिए उन्हें मध्य प्रदेश के इंदौर में 10 अगस्त की देर रात अरविंदो अस्तपाल में भर्ती कराया गया था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति शुरुआती दिनों में बहुत खस्ता थी। उन्हें साइन-बोर्ड चित्रकार के तौर पर भी काम करना पड़ा।
मशहूर शायर राहत इंदौरी की लिखी कुछ बेहतरीन गजलें पढ़िए
राहत इंदौरी अपनी शेरो-शायरी से जिस महफिल में जाते थे। उसकी जान बन जाते थे। कहा जा सकता है कि हाल के बरसों में वो मंच के सबसे प्रिय और हिट शायर के तौर पर उभरे थे। वो गजब के हाजिर जवाब भी थे। वह 70 साल के थे। जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
- राहत का जन्म इंदौर में 01 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहां हुआ था। उनकी सारी पढ़ाई इंदौर में ही हुई। इंदौर के इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की। 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया।
- राहत इंदौरी की पढ़ाई यहीं नहीं रुकी। उन्होंने 1985 में मध्य प्रदेश के भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि हासिल की है।
- उन्होंने अपना करियर इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य के टीचर के तौर पर शुरू किया है। छात्रों के बीच वह जल्दी ही लोकप्रिय हो गए। फिर वह मुशायरों में व्यस्त होते चले।
- परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और राहत जी को शुरुआती दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
- हाल के बरसों में पूरे भारत और विदेशों से उन्हें मुशायरों के निमंत्रण मिलते थे। उनमें गजब की क्षमता और मौलिकता थी। शब्दों की बाजीगरी भी वह खूब जानते थे। इसी से वह हिट होते चले गए। लोगों के बीच दिलों में जगह बनाने लगे। उनकी कविता खुशबू खासी हिट रही, जिसने उन्हें एक तरह से उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रसिद्ध शायर बना दिया।
- सबसे बड़ी बात ये भी थी कि केवल साहित्य और पढा़ई में ही नहीं बल्कि वो खेलकूद में कम नहीं थे। स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी थे।
- राहत जी की दो बड़ी बहनें थीं जिनके नाम तहज़ीब और तक़रीब थे। इसके अलावा उनके दो भाई अकील और आदिल हैं।
- परिवार की आर्थिक हालत खराब होने के कारण उन्हें एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 साल से भी कम उम्र में काम करना शुरू करना पड़ा। उन्हें चित्रकारी में भी रुचि थी। इसमें भी उन्होंने नाम अर्जित किया।
- यह भी एक दौर था कि ग्राहकों को राहत द्वारा चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों का इंतजार करना भी स्वीकार पड़ता था। यहां की दुकानों के लिए किया गया पेंट कई साइनबोर्ड्स पर इंदौर में आज भी देखा जा सकता है।