आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत 28 सितंबर से शुरू होकर 30 सितंबर तक चलेगा। जीवित्पुत्रिका व्रत को माताएं अपनी संतान के स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला रखा जाता है। कुछ जगहों पर जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत के नाम भी जानते हैं। जानिए इस व्रत से जुड़ी परंपरा, शुभ मुहूर्त और कथा
किस दिन है जीवित्पुत्रिका व्रत-
हिंदू पंचांग के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत नहाए-खाए के साथ 28 सितंबर से शुरू होगा। 29 सितंबर को निर्जला व्रत रखा जाएगा और 30 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा।
व्रत से जुड़ी परंपरा-
- सनातन धर्म में पूजा-पाठ में मांसाहार का सेवन वर्जित माना गया है। लेकिन इस व्रत की शुरुआत बिहार में कई जगहों पर मछली खाकर की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस परंपरा के पीछे जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा में वर्णित चील और सियार का होना माना जाता है।
- जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने से पहले कुछ जगहों पर महिलाएं गेहूं के आटे की रोटियां खाने की बजाए मरुआ के आटे की रोटियां खाती हैं। हालांकि इस परंपरा के पीछे का कारण ठीक से स्पष्ट नहीं है। ऐसा सदियों से होता चला आ रहा है।
- इस व्रत को रखने से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है। कहते हैं कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। जिसके कारण व्रती के शरीर को पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है।
- इस व्रत के पारण के बाद महिलाएं जितिया का लाल रंग का धागा गले में पहनती हैं। व्रती महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं।
- पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है। व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाते हैं।
शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:03 ए एम से 04:51 ए एम तक।
विजय मुहूर्त- 01:38 पी एम से 02:25 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त 05:25 पी एम से 05:49 पी एम तक।
अमृत काल 12:19 पी एम से 02:05 पी एम तक।