हर वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया विक्रम संवत्सर प्रारम्भ हो जाता है। इसी दिन चैत्र नवरात्रों का भी प्रारंभ होता है।
विक्रम संवत्सर का प्रारम्भ ही हिन्दू नववर्ष ( Hindu New Year) के रूप में मनाया जाता है। दुनिया के तमाम जितने भी गणना केलेंडर है वो सभी कहीं न कहीं भारतीय पंचांग और काल गणणा पर आधारित है। भारतीय काल गणना सूर्य और चन्द्रमा गतियों पर आधारित है।
विक्रमी संवत का इतिहास
माना जाता है कि सबसे पहले राजा विक्रमादित्य के समय ही वैज्ञानिक रूप से काल गणना का प्रारम्भ कर केलेंडर बनाया गया था। 12 महीने और इनके दिन, सप्ताह के सात दिन जो ग्रहों पर आधारित थे का प्रारम्भ भी इसी पद्धति की देन है। विश्व के अन्य सभी कलेंडर इसी विक्रम संवत पर आधारित है।
57 ईसा पुर्व इस कलेंडर की शुरुआत मानी गई। विक्रम संवत पांच तरह के संवत्सर को मिलाकर माना गया है जिनके नाम सौर, चन्द्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास है।
जानिए पांचो संवत्सर के बारे में : सौर वर्ष – इसका आरम्भ मेष राशि में सूर्य संक्रांति होने पर होता है. इसके सभी 12 महीने राशियों के नाम पर हैं। इसका समय 365 दिन का होता है।
चन्द्र वर्ष : इसके महीने चैत्र से प्रारम्भ होते हैं। इसकी समयावधि 354 दिनों की होती है। बढे हुए 10 दिन अधिमास के रूप में माने जाते हैं।
नक्षत्र : ज्योतिष काल गणना के अनुसार 27 प्रकार के नक्षत्रों का वर्णन है। एक नक्षत्र महीने में दिनों की संख्या भी 27 ही मानी गई है।
सावन वर्ष : सावन वर्ष में दिनों की संख्या लगभग 360 होती है और मास के दिन 30 होते हैं।
अधिमास : वैसे तो अधिमास के 10 दिन चन्द्रवर्ष का भाग है लेकिन इसे चंद्रमास न कह कर अधिमास कह दिया जाता है।