हरछठ या हलछठ (Hal Chhath) व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। कुछ जगहों पर इस व्रत को ललही छठ या हल षष्ठी के नाम से भी जानते हैं। यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन ही बलराम जी का जन्म हुआ था। मान्यता है कि इस व्रत को करने से बलराम जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु व खुशहाली के लिए किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान के आशीर्वाद से निसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
हल से जोती गई चीजों का प्रयोग वर्जित
इस दिन व्रती महिलाएं हल से जोती गई फसल की कोई चीज नहीं खाती हैं। न ही जमीन में उगाई हुई चीज खाई जाती है। बलराम जी का शस्त्र हल माना गया है। इसलिए हल से जोती गई चीजों का प्रयोग वर्जित माना गया है। इस व्रत में तालाब में उगाई गई चीजें खाई जाती हैं। जानें हलषष्ठी (Hal Chhath) व्रत में व्रती महिलाएं किन बातों का रखें ध्यान-
1. हलषष्ठी (Hal Chhath) व्रत के दिन महिलाएं भूलकर भी हल से जोती गई धरती पर न चलें।
2. हल चले अन्न, फल या साग-सब्जी का सेवन न करें।
3. इस दिन तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन का प्रयोग भूलकर नहीं करना चाहिए।
4. इस व्रत में गाय के दूध, दही व घी के प्रयोग की मनाही होती है।
5. इस दिन बड़ों का अनादर नहीं करना चाहिए।
हरछठ (Hal Chhath) व्रत कथा
हलषष्ठी व्रत (Hal Chhath) की पूजा किस समय करनी चाहिए- हरछठ व्रत की पूजा दोपहर में करना शुभ माना जाता है।
हरछठ व्रत (Hal Chhath) की पूजा कैसे की जाती है- इस दिन महिलाएं अपने आंगने में झरबेरी, पलाश और कांसी की टहनी लगाकर पूजा करती हैं। छठ माता का फोटो लगाकर उनको सात अनाजों को मिलाकर बनाया बुआ सतनजा और दही तिन्नी के चावल से भोग लगाया जाता है। इसके बाद व्रत कथा सुनी या पढ़ी जाती है।