हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत (Vat Savitri) को बहुत पावन और महत्वपूर्ण पर्व माना गया है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए विधिपूर्वक करती हैं। वट सावित्री की पूजा भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होती है। धार्मिक मान्यता है कि जो महिलाएं वट सावित्री व्रत करती हैं, उन्हें अखंड सुहाग का वरदान प्राप्त होता है। अगर आप पहली बार वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत रखने जा रही हैं, तो आपको नियमों का खास ध्यान रखना चाहिए। आइए जानते हैं वो नियम कौन से हैं…
वट सावित्री (Vat Savitri) पूजा की विधि
अगर आप पहली बार वट सावित्री (Vat Savitri) पूजा करने जा रही हैं, तो आपको कुछ जरूरी नियमों का पालन करना चाहिए, जिससे आपको व्रत का पूरा फल मिल सके। वट सावित्री व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लाल या पीले रंग के कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें।
फिर वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करें, उसकी जड़ में जल अर्पित करें और पेड़ के चारों तरफ कच्चा सूत या कलावा लपेटें। इसके बाद वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें। वट सावित्री पूजा के दौरान इसकी व्रत कथा का पाठ करें और आरती करें। फिर अगले दिन ग्यारह भीगे हुए चने खाकर व्रत का पारण करें।
वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत के नियम
वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत को निर्जल रखना श्रेष्ठ माना गया है। साथ ही, इस दिन महिलाओं को सोलह श्रृंगार करना चाहिए और पूजा के बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए। इस दिन एक टोकरी में फल, फूल अन्न या वस्त्र आदि रखकर किसी जरूरतमंद को दान करना शुभ माना गया है।
वट वृक्ष की परिक्रमा कैसे करें?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष की परिक्रमा हमेशा घड़ी की दिशा यानी दक्षिणावर्त में ही करनी चाहिए। वट वृक्ष की परिक्रमा करते समय सात बार धागा या कलावा पेड़ के चारों ओर लपेटना चाहिए।