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4 जुलाई से शुरू हो रहा है सावन का महीना, कांवड़ यात्रा से पहले जान लें इन जरुरी बातों को

Gorakhpur-Lucknow Highway

kanwar yatra

इस साल सावन का महीना 58 दिन का रहेगा। सावन मास 04 जुलाई से शुरू होगा और 31 अगस्त तक रहेगा। इतना लंबा सावन 19 साल बाद पड़ रहा है। गौरतलब है कि एक अतिरिक्त महीना, जिसे हिंदू अधिक मास या मल मास के नाम से जानते हैं। श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय महीना होता है। शिव भक्तों को इस महीने का खास इंतजार रहता है। इस दौरान की गई शिव आराधना से हर तरह के दोष खत्म होते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन हिन्दू वर्ष का पांचवा महीना है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करने वाले भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

ऐसी मान्यता भी है कि सावन के महीने में सृष्टि के संचालनकर्ता भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। ऐसे में संसार को चलाने की जिम्मेदारी शिवजी ले लेते हैं। इसलिए सावन महीने के देवता भगवान शिव कहे गए हैं। पूरे महीने भक्त शिवजी की पूजा करते हैं। इस दौरान महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। वहीं, कुंवारी लड़कियां भी इस महीने में अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)  भी निकाली जाती है। कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्त पवित्र गंगा नदी से जल भरकर लाते हैं और भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान शिव काफी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत, महत्व और इसके नियम

कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) की शुरुआत?

माना जाता है कि सबले पहले श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)  की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वह हिमाचल के ऊना में थे तब उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए। माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

वहीं, यह भी माना जाता है कि कावड यात्रा (Kanwar Yatra) की शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। मंथन से निकले विष को पीने की वजह से शिव जी का कंठ नीला पड़ गया था और तब से वह नीलकंठ कहलाए। इसी के साथ विष का बुरा असर भी शिव पर पड़ा। विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावण ने तप किया। इसके बाद दशानन कांवड़ में जल भरकर लाया और पुरा महादेव में शिवजी का जलाभिषेक किया। इसके बाद शिव जी विष के प्रभाव से मुक्त हुए।

वहीं, यह भी माना जाता है कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योग शक्ति से शरीर त्यागा था। उससे पहले उन्होंने महादेव को प्रत्येक जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अगले जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने सावन महीने में कठोर व्रत कर भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया था। तब से महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया।

कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)  का महत्व

माना जाता है कि भगवान शिव को बड़ी आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। सिर्फ एक लोटा जल चढ़ाने से भगवान शिव खुश हो जाते हैं इसी के चलते हर साल शिव भक्त कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) निकालते हैं।

कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के नियम

कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) पर जाने वाले भक्तों को इस दौरान खास नियमों का पालन करना होता है। इस दौरान भक्तों को पैदल यात्रा करनी होती है। सात्विक भोजन का सेवन करना होता है। साथ ही आराम करते समय कांवड़ को जमीन पर नहीं बल्कि किसी पेड़ पर लटकाना होता है। अगर आप कांवड़ (Kanwar Yatra) को जमीन पर रखते हैं तो आपको दोबारा से गंगाजल भरकर फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है। कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को नंगे पांव चलना होता है। स्नान के बाद ही कांवड़ (Kanwar Yatra)  को छुआ जाता है। बिना स्नान के कांवड़ को हाथ नहीं लगाया जाता।

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