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जानें क्या होती है कार्बन डेटिंग, ज्ञानवापी मामले में क्यों हुआ इसका जिक्र

Writer D by Writer D
14/10/2022
in Main Slider, शिक्षा
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Carbon Dating

Carbon Dating

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वाराणसी। ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) परिसर मामले में मिले कथित ‘शिवलिंग’ की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) की मांग उठी थी। जिसे आज वाराणसी कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जहां कथित शिवलिंग पाया गया है, उसे सुरक्षित रखा जाए। ऐसे में अगर कार्बन डेटिंग (Carbon Dating)  के दौरान कथित शिवलिंग को क्षति पहुंचती है तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा। ऐसा होने से आम जनता की धार्मिक भावनाओं को भी चोट पहुंच सकती है। आइये विस्तार से जानते है कार्बन डेटिंग क्या होती है?

क्या है कार्बन डेटिंग (Carbon Dating)

कार्बन डेटिंग उस विधि को कहा जाता है, जिसकी मदद से संबंधित वस्तु की उम्र की जानकारी हासिल की जा सकती है। कार्बन डेटिंग की प्रक्रिया आमतौर पर पुरानी चीजों की उम्र का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया के जरिए लकड़ी, चारकोल, बीज, बीजाणु, पराग, हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग, रक्त अवशेष, पत्थर, मिट्टी आदि की अनुमानित आयु की जानकारी हासिल कर सकते है। कार्बन डेटिंग के जरिए कार्बनिक अवशेषों जैसे कोरल, शैल, बर्तन, दीवारों पर की गई चित्रकारी आदि की उम्र के बारे में जानकारी मिलती है।

कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) का तरीका

विशेषज्ञों के मुताबिक  वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप होते हैं, कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14। कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 चाहिए होता है और फिर इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है। इस बदलाव को मापने के बाद किसी जीव  या वस्तु की अनुमानित उम्र का पता लगाया जाता है।

नहीं होगी ज्ञानवापी में मिले ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग, कोर्ट ने खारिज की मांग

वैज्ञानिकों के मुताबिक कार्बन 12 स्थिर होता है। इसकी मात्रा में कमी नहीं होती है। कार्बन 14 रेडियोएक्टिव होता है, जिसमें कार्बन की मात्रा में गिरावट होती है। बता दें कि कार्बन 14 को अपनी मात्रा का आधा होने में लगभग 5,730 वर्षों का समय लगता है। कार्बन डेटिंग के जरिए जानकारी हासिल करने के लिए अप्रत्यक्ष विधियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

वर्ष 1949 में हुई थी खोज

जानकारी के मुताबिक कार्बन डेटिंग जिसे रेडियो कार्बन डेटिंग कहा जाता है, की खोज वर्ष 1949 में हुई थी। शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी को इस खोज के लिए नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था। हालांकि इस प्रक्रिया का उपयोग आज भी काफी किया जाता है मगर इसकी सटीकता को लेकर लगातार सवाल खड़े होते रहे है।

किन पर उपयोग

रेडियोकार्बन डेटिंग का प्रयोग कार्बनिक पदार्थों पर ही किया जा सकता है, जैसे

– लकड़ी और चारकोल

– बीज, बीजाणु और पराग

– हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग और रक्त अवशेष

– मिट्टी

– शैल, कोरल और चिटिन

– बर्तन (जहां कार्बनिक अवशेष है)

– दीवार चित्रकारी

– पेपर और पार्चमेंट

कब इसकी मदद लेनी चाहिए

अधिकांश कार्बनिक पदार्थ तब तक उपयुक्त होते हैं जब तक कि यह पर्याप्त उम्र के होते हैं और खनिज नहीं होते। वैसे पत्थर और धातु की डेटिंग नहीं की जा सकती है, लेकिन बर्तनों की डेटिंग की जा सकती है।

Tags: carbon datingEducation Newsgyanvapi masjidhows carbon dating workvaranasi newswhat is carbon datingwho discovered carbon dating
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नहीं होगी ज्ञानवापी में मिले ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग, कोर्ट ने खारिज की मांग

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