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जानें क्या है ईद-उल-अजहा और कुर्बानी का मतलब

Desk by Desk
27/07/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, धर्म, फैशन/शैली, राष्ट्रीय
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ईद-उल-अजहा

ईद-उल-अजहा

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धर्म डेस्क। ईद-उल-अजहा इस्लामिक कैलेंडर में आने वाला दूसरा वार्षिक त्योहार है, जो इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने ‘जु-अल-हिज्ज’ में मनाया जाता है। दुनियाभर के मुसलमान इस महीने में सऊदी अरब के शहर मक्का में एकत्रित होकर हज करते हैं, हज मुस्लिम तीर्थ का नाम है, जिसे प्रत्येक सक्षम मुसलमान को अदा करना अनिवार्य है। ईद-उल-अजहा इसी महीने के दसवें दिन में मनाई जाती है। वास्तव में इस दिन, हज यात्रा में अदा किए जाने वाली अनेक धार्मिक कृत्यों में से एक धार्मिक कृत्य, जिसे कुर्बानी कहा जाता है, को पूर्ण किया जाता है।

ईद-उल-अजहा का शाब्दिक अर्थ

विश्वभर के मुसलमानों का एक समूह मक्का में हज करता है और बाकी मुसलमान अपने-अपने देशों में इस दिन ईद-उल-अजहा मनाते हैं, ईद-उल-अजहा का शाब्दिक अर्थ है त्याग वाली ईद। हज यात्रा और उसके साथ जुड़ी हुई पद्धति पैगंबर इब्राहिम और उनके परिवार द्वारा किए गए कार्यो को प्रतीकात्मक तौर पर दोहराने का नाम है।

हजरत इब्राहिम का जीवन पढ़कर पता चलता है कि वे हमेशा खुदा के दिखाए रास्ते पर चले। एक बार उन्हें खुदा की तरफ से हुक्म हुआ कि वे अपने बेटे हजरत इस्माइल और बीवी हजरत हाजरा को लाकर मक्का में बसा दें और स्वयं को मानव सेवा के लिए लगाएं। मक्का उस समय एक विशाल रेगिस्तान के सिवाय कुछ न था। उन्होंने खुदा के इस हुक्म का पालन किया और ईराक में अपना पैतृक शहर छोड़ मक्का के इस कठिन सफर को पूरा किया और मक्का के रेगिस्तानों में अपने नवजात बेटे इस्माइल और बीवी हाजरा को लाकर बसा दिया। उनके परिवार ने रेगिस्तान की अनेक कठिनाइयों के बीच अपना जीवन गुजारा, लेकिन कभी शिकायत की।

हजरत इब्राहिम ने किया बेटे की कुर्बानी का फैसला

दरअसल ईद-उल-अजहा का ऐतिहासिक परिपेक्ष्य यह है कि हजरत इब्राहिम ने एक स्वप्न देखा था कि वो अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं। हजरत इब्राहिम खुदा में पूर्ण विश्वास रखते थे, उनको इस स्वप्न से लगा कि यह खुदा की तरफ से संदेश है। उन्होंने अपने इस स्वप्न को सार्थक तौर पर लिया और अपने 10 साले के बेटे को खुदा की राह पर कुर्बान करने का निश्चय कर लिया। हजरत इब्राहिम के इस जज्बे को देखकर खुदा ने उनसे बेटे की जगह एक जानवर की कुर्बानी करने का आदेश दिया।

कुर्बानी का असली मतलब

विद्वानों ने इस किस्से की व्याख्या में यह लिखा है कि हजरत इब्राहिम का यह कर्म उनके जज्बे को दर्शाता है और व्यक्ति का यही जज्बा खुदा तक पहुंचता है न कि किसी जानवर की कुर्बानी। कुरान में आता है कि खुदा तक तुम्हारी कुर्बानी नहीं पहुंचती बल्कि पहुंचती है व्यक्ति की परहेजगारी (22:37)। हज और ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहिम और उनके परिवार द्वारा दी गई स्वयं की इच्छाओं की कुर्बानी को याद करने का ही दूसरा नाम है।

आज कई महीनों से पूरा विश्व कोविड-19 से दिन-रात लड़ रहा है। जिसके चलते इस बार उतनी बड़ी संख्या में लोग हज नहीं अदा कर पाएंगे जैसा हर साल करते थे। सऊदी अरब के हज मंत्रालय का कहना है कि इस साल लगभग 1,000 हजयात्रियों को ही हज करने की अनुमति दी जाएगी, जो संख्या गत वर्षो में लगभग पचीस लाख थी। मंत्रालय का कहना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को संरक्षित करने के उद्देश्य से यह फैसला लिया गया है।

इस्लामिक आस्था से जुड़े इतने महत्वपूर्ण पर्व पर इतना बड़ा फैसला लेना सऊदी सरकार के लिए कोई छोटी बात नहीं थी।आज भारत में रह रहे मुस्लिम समुदाय के नेतृत्व को भी दरकार है कि स्वयं सरकार के साथ मिलकर समाज में इस बात को रखें कि इस साल लोग कुर्बानी की कुर्बानी करें।

कुर्बानी का असल भाव जो हजरत इब्राहिम से हमें मिलता है हम हर स्थिति में स्वयं को ढाल लें और शिकायत करने से बचें। आज महामारी के चलते अनेक परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। बेहतर होगा कि हम कुर्बानी में खर्च होने वाले पैसों को इस साल ऐसे परिवारों तक पहुंचाएं। यही सच्चे मायने में इस साल सभी की कुर्बानी होगी।

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