धर्म डेस्क। भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या कहा जाता है। भाद्रपद मास की अमावस्या को कृष्ण जी को समर्पित किया जाता है। अमावस्या के दिन दान और पितृ तर्पण का बहुत महत्व होता है। अगर यह अमावस्या सोमवार के दिन पड़ती है और सूर्यग्रहण भी होता है तो इस अमावस्या का महत्व कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। इस अमावस्या पर कुश (घास) का बहुत महत्व माना जाता है, भादप्रद की अमावस्या को धार्मिक कार्यों जैसै श्राद्ध आदि करने में कुश का उपयोग किया जाता है। इसलिए इसे कुश ग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे भादों अमावस्या भी कहते हैं। यह दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिए भी उत्तम माना गया है। जानते हैं कब है अमावस्या क्या है इसका महत्व और उपाय
भाद्रपद अमावस्या तिथि आरंभ और समापन समय
- 18 अगस्त 2020 को 10:41 से भाद्रपद अमावस्या आरंभ होकर 19 अगस्त 2020 को 08:12 तक रहेगी।
- भाद्रपद अमावस्या का व्रत 19 अगस्त को रख सकते हैं।
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
पितृ तर्पण के लिए यह दिन बहुत उत्तम होता है। साथ ही कृष्ण पक्ष में पड़ने की वजह से यह अमावस्या कृष्ण जी को समर्पित की जाती है जिसके कारण इसका महत्व और ज्यादा माना गया है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा का महत्व भी माना गया है।
भाद्रपद अमावस्या के दिन ये उपाय कर सकते हैं
- अमावस्या पर दान-स्नान का बहुत महत्व माना गया है। इसलिए इस दिन प्रातःकाल की बेला में किसी पवित्र नदी, कुंड में स्नान करना चाहिए, और सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
- अमावस्या का दिन पितृ तर्पण के लिए बहुत उत्तम रहता है। इसलिए इस दिन किसी नदी के तट पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और दान करें। इससे आपको पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी।
- अमावस्या को के दिन शनिदेव की पूजा करने का महत्व भी माना गया है। अमावस्या के दिन आप शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजा भी कर सकते हैं।
- जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष बनता हो, उन लोगों को अमावस्या के दिन कालसर्प दोष निवारण करवाना चाहिए। इससे कालसर्प दोष के कारण होने वाले प्रभाव कम होते हैं।
- अपने पूर्वजों की शांति के लिए अमावस्या के दिन संध्या के समय किसी पीपल के वृक्ष के नीचे जाकर सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें। और प्रार्थना करते हुए पीपल की सात परिक्रमा लगाएं।