लाइफ़स्टाइल डेस्क। इस्लाम में बकरीद का महत्व बहुत ज्यादा है। इस्लाम के अनुसार, जो चीज आपको सबसे ज्यादा प्यारी है इस दिन उसकी कुर्बानी दी जाती है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी इस त्योहार की रौनक होती है। इस दिनईद की नमाज अता करने के बाद लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं। इस्लाम धर्म में ऐसा माना जाता है कि जो भी तुम्हारी सबसे प्यारी चीज हो उसे अल्लाह की राह में खर्च करो। यानी उस चीज को नेकी और भलाई के कामों में खर्च करना चाहिए। लेकिन किया आपको पता है कि इस दिन सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने के बजाय बकरे की कुर्बानी क्यों दी जाती है। अगर नहीं तो यहां हम आपको इसके पीछे छिपी कहानी की जानकारी दे रहे हैं।
जानें बकरीद की कुर्बानी की कहानी:
इस्लाम धर्म में कुर्बानी तेने की परंपरा पैगंबर हजरत इब्राहिम ने शुरू की थी। मान्यताओं के अनुसार, इब्राहिम अलैय सलाम की कोई संतान या औलाद नहीं थी। इन्होंने औलाद के लिए कई मिन्नतें मांगी। अल्लाह ने उनकी मिन्नतें सुनकर उन्हें औलाद दी। हजरत इब्राहिम ने इस बच्चे का नाम इस्माइल रखा। हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल से बेहद प्यार करते थे। इसी बीच एक रात ऐसी आई जब अल्लाह ने इब्राहिम से कहा कि उसे अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देनी होगी। तो इब्राहिम ने एक-एक कर अपने जानवरों की कुर्बानी दी। इसके बाद भी अल्लाह उसके सपने में आए और उन्होंने फिर से उसे आदेश दिया कि उसे अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देनी होगी।
हजरत इब्राहिम को अपने बेटे से बेहद प्यार था। अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल कुर्बानी देने को तैयार कर दिया। अपनी बेटे की हत्या न देख पाए इसलिए उसने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। फिर उसने अपने बेटे की कुर्बानी दे दी। कुर्बानी देने के बाद जब उसने अपनी आंखें खोली तो देखा कि उसका बेटा तो जीवित है। वह यह दृश्य देखकर हैरान रह गया। अपने बेटे को जीवित देख वो बेहद खुश हुआ। अल्लाह ने इब्राहिम की निष्ठा देख उसके बेटे की जगह बकरा रख दिया था। बस तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि लोग बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देते हैं। साथ ही बकरों की कुर्बानी देकर लोग इब्राहिम द्वारा दी गई कुर्बानी को याद करते हैं।