धर्म डेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष भादों माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिण नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार 12 अगस्त को जन्माष्टमी है लेकिन इस बार भी पंचांग भेद के कारण कुछ जगहों पर जन्माष्टमी 11 अगस्त को तो कुछ जगहों पर 12 अगस्त को मनाई जाएगी। भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि पर हुआ था ऐसे में इस बार 11 अगस्त को सुबह अष्टमी तिथि 7 बजकर 6 मिनट से शुरू होकर 12 अगस्त की सुबह 7 बजकर 54 मिनट तक रहेगी। महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण का अहम योगदान रहा था।
उन्होंने ही अर्जुन को धर्म और अधर्म के बारे में ज्ञान दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समस्त गीता का बोध ज्ञान करवाया था। गीता में जीवन का समस्त ज्ञान समाया हुआ है और इसमें जीवन के सार का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। गीता और भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन से कई बातों को सीखा जा सकता है और उसको अपने जीवन में अनुसरण कर सफलता प्राप्त की जा सकती है।
पहला मंत्र- शान्त और धैर्य स्वभाव रखकर काम करना
भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप के बारे में हर किसी को पता है कि वह बचपन में बहुत ही शरारती स्वभाव के थे। लेकिन जब भी उन्होंने विपरीत परिस्थितियों का सामना किया उनका स्वभाव हमेशा शांत रहा। कृष्ण जी भगवान विष्णु के अवतार थे और वे यह बात जानते थे कि कंस उन्हें मारना चाहते थे, फिर भी वे शांत रहे और समय आने पर कंस के हर प्रहार का मुंहतोड़ जवाब दिया। इससे सीख मिलती है कि कठिन समय में भी अपने मन को शांत रखना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में भी शान्त स्वभाव का त्याग नहीं करना चाहिए।
दूसरा मंत्र-साधारण जीवन
भगवान कृष्ण हमेशा साधारण आम लोगों की तरह जीवन जीने में विश्वास करते थे। गोकुल के राजघराने में परविश होने के बावजूद वह अन्य सामान्य बालकों के साथ रहते, खेलते और घूमते रहते थे। उन्हें कभी भी अपने राजघराने का घमंड नहीं था। इससे यह सीख मिलती है कि व्यक्ति चाहे जितना ऊपर बढ़ जाए उसको साधारण जीवन ही जीना चाहिए।
तीसरा मंत्र- कभी हार न मानना
भगवान कृष्ण कभी भी बुरा समय आने पर घबराते नहीं थे। वह विपरीत परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करते थे। उनका मनाना था बुरे समय में विवेक पूर्वक काम करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने कभी भी हार न मनाने का संदेश दिया था। अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए, जब तक परिणाम आपके पक्ष में न हो सके।
चौथा मंत्र-दोस्ती निभाना
भगवान कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल हर कोई देता है। यह दोस्ती महज दोनों के प्रेम के कारण नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति आदर के कारण भी प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण ने हमेशा अपने मित्र सुदामा और अर्जुन का साथ दिया था।
पांचवा मंत्र-माता-पिता का हमेशा आदर करना
श्रीकृष्ण को जन्म देवकी ने दिया था लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा और नंद ने गोकुल में किया। यह जानते हुए कि उनके अपने माता-पिता उनसे दूर हैं। श्रीकृष्ण ने उन्हें दिल से प्रेम किया। उनका आदर और सम्मान करने में कोई कसर ना छोड़ी।