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करवा चौथ पर जानें करवा और छलनी समेत इन चीजों का महत्व

Writer D by Writer D
18/10/2021
in Main Slider, ख़ास खबर, धर्म, फैशन/शैली
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करवा चौथ Karva Chauth

करवा चौथ

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करवा चौथ के त्‍योहार में पूजा पाठ की बहुत ही अहम भूमिका होती है। महिलाएं सारे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम को चांद की पूजा कर पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलती हैं। मान्यता है कि करवा चौथ के व्रत की पूजा के दौरान 16 श्रृंगार से सजना शुभ होता है। इसके अलावा भी करवाचौथ की पूजा में इन 5 जरूरी चीजों का बहुत महत्‍व होता है। आइए जानते हैं कौन सी वे चीजें।

करवा माता की तस्वीर

करवा माता की तस्वीर अन्य देवियों की तुलना में बहुत अलग होती है। इनकी तस्वीर में ही भारतीय पुरातन संस्कृति और जीवन की झलक मिलती है। चंद्रमा और सूरज की उपस्थिति उनके महत्व का वर्णन करती है। करवा माता की पूजा करने और कथा सुनने के बाद ही व्रत का फल प्राप्त होता है।

छलनी का महत्व

हिंदू धर्म के मुताबिक, चांद को ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि चांद के वरदान से इंसान को लंबी आयु मिलती है। चांद को सुंदरता, शीतलता, प्यार, सिद्धी और प्रसिद्धी के लिए पूजा जाता है। इसलिए करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं छलनी से पहले चांद देखती हैं फिर अपने पति का चेहरा। वह चांद को देखकर यह कामना करती हैं कि उनके पति में भी चांद जैसे सारे गुण आ जाएं।

लोटे का महत्व

लोटा करवा चौथ व्रत में चंद्रदेव को अर्घ्य देने के लिए जरूरी होता है। पूजा के दौरान लोटे में जल भरकर रखते हैं। यह जल चंद्रमा को हमारे भाव समर्पित करने का एक माध्यम है।

दीपक का महत्व

हिंदू धर्म में कोई भी पूजा दीपक के बिना पूरी नहीं होती। वहीं करवा चौथ की इस पूजा में दीपक की लौ, जीवन ज्योति का प्रतीक होती है। पूजा थाली में दीपक इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह हमारे ध्यान को केंद्रित कर एकाग्रता बढ़ाता है।

करवे का महत्व

करवा चौथ में इस्तेमाल किया जाने वाला करवा काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मिट्टी का बना टोंटीदार बर्तन होता है। दरअसल मिट्टी को पंच तत्व का प्रतीक माना गया है। करवे को मिट्टी को पानी में गला कर बनाते हैं जो भूमि तत्व और जल तत्व का प्रतीक है। उसे बनाकर धूप और हवा से सुखाया जाता है जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीक हैं फिर आग में तपाकर बनाया जाता है। इस तरह करवा पांच तत्व का प्रतीक माना गया है। करवा चौथ व्रत की पूजा इसके बगैर अधूरी मानी जाती है क्योंकि इसी करवे से पत्नी, पति के हाथों पानी पीकर व्रत खोलती है।

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