लखनऊ। असम राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य स्थित माजुली द्वीप गंभीर खतरे में है। आवर्ती बाढ़ व नदी तटों के कटाव द्वारा भूमि क्षेत्र में भारी कमी हो गयी है। इसके कई कारण हैं जैसे नदी तट रेखा का स्थानांतरण होना, अनुत्पादक रेत के जमाव द्वारा उपजाऊ भूमि का अवक्रमण हो जाना, द्वीप में जल निकायों का अवक्रमण होना, आदि।
खस जैसी बाढ़-रोधी सगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देकर परती भूमि के संरक्षण और बहाली की दिशा में एक प्रयास के रूप में सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ द्वारा माजुली में अरोमा मिशन चरण- के तहत सगंधित फसलों की खेती व प्रसंस्करण के लिए प्रगतिशील किसानों के चयन हेतु एक प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
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सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ के निदेशक, डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने कहा कि माजुली को सगंधित फसलों के जैविक क्लस्टर में परिवर्तित किया जा सकता है। इन फसलों से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है। प्रारंभिक दौर में, खस की फसल को बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लगाया जा सकता है। माजुली के असिंचित क्षेत्रों में लेमनग्रास लगाया जाएगा। खस मिट्टी के कटाव को रोक सकता है और यह धातु-प्रदूषित मिट्टी के पुनर्वास में भी सहायक है। धान की कटाई के बाद भूमि खाली होने पर जनवरी-फरवरी में मेंथा की फसल भी लगाई जाएगी।
इस अवसर पर इरशाद अली, कृषि अधिकारी, माजुली ने भी दर्शकों को संबोधित किया। इस कार्यक्रम के दौरान, डॉ. आर. के. श्रीवास्तव, वरिष्ठ वैज्ञानिक और नोडल, एनईआर क्षेत्र (अरोमा मिशन) ने चयनित फसलों, यानी मेंथा, खस व लेमनग्रास की खेती के तरीकों और अर्थशास्त्र के बारे में बात की।
इस कार्यक्रम में सीएसआईआर-नीस्ट, जोरहाट के डॉ. लकी सैकिया ने भी दर्शकों को संबोधित किया और हिंदी से असमिया भाषा में भाषण का अनुवाद किया। सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ से मनोज कुमार, डॉ. धीरज यादव और हिमांशु ने भी कार्यक्रम में भाग लिया।
इस अवसर पर, सीएसआईआर-सीमैप के निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने इच्छुक प्रतिभागियों को खस व लेमनग्रास की रोपण सामग्री भी वितरित की। इस कार्यक्रम में क्षेत्र के लगभग 100 प्रगतिशील किसानों, विशेष रूप से मिसिंग जनजाति, ने भाग लिया। कार्यक्रम का समापन असम सरकार के कृषि अधिकारी इरशाद अली के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।