दीक्षांत शिक्षा के अंत का समारोह ही नहीं है, बल्कि यही से विद्यार्थी के जिन्दगी की कसौटी शुरू होती है। विद्यार्थी भविष्य की कठिनाइयों का सामना सफलतापूर्वक तभी कर पायेंगे, जब अपने भीतर के विद्यार्थी-भाव को सोने नहीं देंगे। जीवन में सफलता का मूलमंत्र कठिन परिश्रम है। सफलता की सीढ़ी कठिन परिश्रम से ही बनती है। ये विचार राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने आज जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया के द्वितीय दीक्षांत समारोह में व्यक्त किए।
दीक्षांत समारोह में कुल 21,079 उपाधियाँ वितरित की गई, जिसमें 17,103 स्नातक व 3,976 परास्नातक छात्र-छात्राओं को उपाधियां दी गई। समारोह में 32 छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। कुल 66.34 फीसदी छात्राओं ने उपाधि प्राप्त की। राज्यपाल ने कहा कि छात्राओं द्वारा कुलाधिपति स्वर्ण पदक प्राप्त करना महिला सशक्तीकरण और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की सार्थकता का सशक्त उदाहरण है।
राज्यपाल ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थाएं शिक्षा में नवीनता और आधुनिकता का ध्यान रखें और अपनी सांस्कृतिक विरासत, समृद्ध परम्पराओं एवं शाश्वत मूल्यों की निधि को भी विस्मृत न करें। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में उचित आधारभूत संरचना और वांछित संख्या में स्तरीय शिक्षक होने चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालय को स्वायत्ता प्राप्त हो, परंतु उत्तरदायित्व भी निश्चित हो, जिससे पारदर्शिता बनी रहे और सही दिशा में विकास के साथ विश्वविद्यालय विश्व क्षितिज पर पहचान बनायें।
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श्रीमती पटेल ने कहा कि नई शिक्षा नीति की संकल्पना भारत को स्वदेशी ज्ञान और तकनीेक के आधार पर विश्व गुरु बनाने में सहायक होगी। भारतीय ज्ञान-शक्ति से आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा। वर्ष 2021-22 के बजट में केन्द्र सरकार ने शिक्षा पर फोकस किया है। नई शिक्षा नीति इस दिशा में बढ़ाया गया एक अति महत्वपूर्ण कदम है। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा और शोध की गुणवत्ता बढ़ाई जाय। इसके लिए केजी से लेकर पीजी तक के पाठ्यक्रमों एवं आधारभूत ढांचे में बदलाव की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे मानव संसाधन तैयार करने चाहिए जो वैश्विक चुनौतियों का आसानी से सामना करने में सक्षम हों।
राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालयों कोे शैक्षणिक कार्य के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी सहभागिता करनी चाहिए। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2025 तक टीबी मुक्त भारत की कल्पना की है। हम सभी को इसे साकार करना है। विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय टीबी रोग से पीड़ित बच्चों को गोद लें, छात्राओं की एनीमिया जांच कराएं, गर्भवती महिलाओं का सौ प्रतिशत प्रसव अस्पताल में ही कराने, स्तनपान को बढ़ावा देने, आंगनबाड़ी केन्द्रों को पुष्टाहार उपलब्ध कराने जैसे कार्यों को भी करें। उन्होंने कहा कि समाज में फैली कुरीतियां, बाल-विवाह एवं महिलाओं पर होने वाले घरेलू अत्याचार पर रोक लगायी जानी चाहिए और इसका विरोध घर से ही शुरू किया जाए।
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इस अवसर पर राज्यपाल ने विश्वविद्यालय की स्मारिका मंथन, अन्वीक्षण तथा दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ की पुस्तक विचार-प्रवाह का लोकार्पण भी किया। राज्यपाल ने इस मौके पर प्राथमिक विद्यालयों के 50 छात्र-छात्राओं को पुस्तकें, टिफिन, बॉक्स, किताबें फल एवं मिठाई वितरित की।
दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति श्री शम्भूनाथ श्रीवास्तव, विशिष्ट अतिथि प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ दिनेश शर्मा, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कल्पलता पाण्डेय एवं कार्य परिषद एवं विद्या परिषद के सदस्यगण सहित शिक्षकगण, कर्मचारीगण एवं छात्र-छात्राओं उपस्थित थे।