कानपुर में विक्रम कोठारी और उदय देसाई के मामलों की तरह बैंकों ने श्री लक्ष्मी कॉटसिन के मालिक एमपी अग्रवाल को भी जनता की जमा पूंजी लूटने की खूब छूट दी। हद देखिए, एमपी अग्रवाल की कंपनी को उसकी हैसियत से सौ गुना अधिक लोन दिया गया।
बैंक अफसरों ने यह भी नहीं सोचा कि रकम डूबी तो इसकी वसूली कैसे होगी। आखिरकार वही हुआ। बैंकों ने रकम वसूलकर पाने से हाथ खड़े कर दिए हैं। संपत्तियों की बिक्री की दशा में बैंकों को 70 करोड़ रुपये से अधिक की राशि हाथ नहीं लगेगी। सीबीआई ने जांच में इन बिंदुओं को भी शामिल किया है कि आखिर बंधक संपत्ति के एवज में बैंकों ने सौ गुना अधिक रकम क्यों दी।
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जब लोन दिया गया तो उस कार्यकाल में कौन सीएमडी था। क्या ये बात सीएमडी को पता थी? सीबीआई ने बैंक अफसरों से पूछताछ के लिए सवालों की सूची तैयार की है। माना जा रहा है कि इस प्रकरण में कई बड़े बैंक अफसर फंसेंगे। बैंकों के सूत्र बताते हैं कि आमतौर पर इस तरह के मामलों में शाखा प्रबंधकों पर गाज गिरा दी जाती है, लेकिन यह मामला सीधे दिल्ली से जुड़ा है।
बैंक के शीर्ष अफसरों की अनुमति के बगैर इतने बड़े लोन पास नहीं होते। माना जा रहा है कि कारोबारी को इतना बड़ा डिफाल्टर बनवाने में बैंक अफसरों की भी भूमिका है। इतना बड़ा लोन दिलवाने में बड़े कमीशन की भी चर्चाएं अब शुरू हो गई हैं।