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भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति के संरक्षण का दिया सन्देश

धर्म डेस्क। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा यानि दीपावली के दूसरे दिन पूरे देश में गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण,गिरिराज पर्वत एवं गौ माता की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गाय की पूजा के बाद गाय पालक को अन्न, वस्त्र आदि वस्तुए दान में देना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। समूचे ब्रज सहित पूरे उत्तर भारत में इस दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का उत्सव मनाया जाता है। इसके अलावा इस दिन घरों में नए-नए पकवानों को बनाया जाता है। कुछ लोग इस दिन 56 या 108 तरह के पकवानों को बनाते हैं और श्रीकृष्ण को भोग चढ़ाते हैं।

इसलिए मनाते हैं गोवर्धन उत्सव

एक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने देवराज इंद्र का घमंड चूर करने के लिए उनकी पूजा को बंद कराकर उसकी जगह कृष्ण स्वरुप गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरुआत की थी। इससे गुस्साए इंद्रदेव ने भीषण तेज बारिश करा दी। बारिश के पानी से बचने के लिए ब्रज के लोग इधर उधर भागने लगे, लेकिन उन्हें छुपने के लिए कोई जगह नहीं मिली। इसके बाद श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली (कनिष्ठ उंगली) पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहे। इंद्रदेव ने मांगी थी माफी

श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर बारिश की एक बूंद भी नहीं पड़ी। ब्रह्माजी ने इंद्रदेव को समझाया कि पृथ्वी पर भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म ले लिया है, तुम उनसे वैर मत करो। यह बात सुनकर इंद्रदेव अपनी गलती पर बहुत लज्जित हुए और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से माफी मांग कर उनकी चरण वंदना की।

कैसे शुरू हुआ अन्नकूट महोत्सव

भगवान श्री कृष्ण ने भारी बारिश से गोवर्धन पर्वत के नीचे समूचे ब्रजवासियों को बचाया था। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने लोगों को पर्वत और प्रकृति से मिलने वाली वस्तुओं की अहमियत बताने और उनके प्रति सम्मान जताना सिखाने के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरूआत की थी। इसलिए आज भी हर साल गोवर्धन पूजा की जाती है। जिसमें लोग गोबर और साबुत अनाज से भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत के प्रतीक बनाकर पूजा करते हैं और प्रकृति से मिलीं चीजों से ही अन्नकूट बनाकर भोग लगाया जाता है।

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