उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भारतीयता का प्रतीक कहा है। श्रीराम के जीवन चरित को मनुष्यता के प्रतिबिंब की संज्ञा देते हुए उन्होंने कहा कि राम को जिसने जिस भाव से भजा, उसे वैसी ही गति मिली। रत्नाकर ने भजा तो वाल्मीकि होकर रामायण की रचना की और मारीच ने द्वेषभाव से भजा तो उसे मनुष्य होते हुए भी पशु योनि में मरना पड़ा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हनुमान ने ‘राम काज’ को जीवन माना तो लोक देवता हो गए और रावण ने वैर भाव रखा तो उसकी ऐसी दुर्गति हुई कि बुराई का सनातन प्रतीक बन गया। महर्षि वाल्मीकि के ‘रामो विग्रहवान् धर्मः’ उक्ति का संदर्भ देते हुए मुख्यमंत्री ने श्रीराम को साक्षात धर्म कहा।
सीएम योगी, शुक्रवार शाम मुख्यमंत्री आवास पर अयोध्या शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘भारतीय भाषाओं में राम’ (चार खंड) का लोकार्पण कर रहे थे। समारोह में उन्होंने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी का देश इंडोनेशिया हो या फिर थाईलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देश, राम सर्वत्र हैं। सबने राम की महिमा को सहर्ष अंगीकार किया है। हम रामकथा से परिचित हैं, उसके सभी पात्रों, संवादों को जानते हैं, फिर भी हर साल जब रामलीला का मंचन होता है तो हर कोई पूरे श्रद्धाभाव से एक-एक घटना को देखता है। स्वयं को जोड़ता है।
योगी ने कहा कि कोरोना काल में जब दूरदर्शन पर रामायण धारावाहिक का प्रसारण हुआ तो उसकी टीआरपी ने कई कीर्तिमान रचे। यही राम की महिमा है। राम को जब भी जितनी बार भी देखा, पढ़ा समझा जाए, हर बार एक नई ऊर्जा से मन प्रकाशित हो उठता है।
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मुख्यमंत्री ने कहा कि धर्म एक शास्वत व्यवस्था है। वह व्यवस्था जिस पर समाज टिका है। उपासना विधियां अलग-अलग हो सकती हैं। पर धर्म तो एक ही है। अयोध्या शोध संस्थान और वाणी प्रकाशन द्वारा 17 भाषाओं में राम कथा को संकलित कर ‘भारतीय भाषाओं में राम’ (चार खंड) के प्रकाशन को योगी ने अद्भुत प्रयास कहा और बताया कि बहुत जल्द ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ राम भी उपलब्ध होगी।
राम हमारे प्राण, हमारी प्रज्ञा : दीक्षित
लोकार्पण समारोह में विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि कुछ समय पहले तक कुछ लोग जो राम को काल्पनिक पात्र बताकर उनका अपमान करते थे आज उनमें अयोध्या का टिकट कटाने की होड़ मची है। उनमें से हर कोई खुद को सबसे बड़ा रामभक्त बताते नहीं थक रहा।
दीक्षित ने कहा कि राम भारत की आत्मा हैं। हमारे प्राण हैं, प्रज्ञा हैं। राम के बिना मनुष्यता की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने ग्रन्थ के प्रकाशन पर सभी को बधाई भी दी।
कार्यक्रम में राष्ट्रधर्म पत्रिका के संपादक ओम प्रकाश पांडेय ने वाल्मीकि कृत रामायण, तुलसी रामचरित मानस, कृतवास रामायण आदि का उद्धरण देते हुए श्रीराम जीवन चरित के विविध प्रसंगों के माध्यम से आदर्श चरित्र की व्याख्या की और बताया कि किस प्रकार एक कालखंड विशेष में रामकथा में क्षेपक जोड़कर राम की मर्यादा पर आघात करने का कुत्सित प्रयास किया गया। लोकार्पण समारोह में वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी ने सभी के प्रति आभार ज्ञापन किया।