प्रयागराज। जनवरी-2025 में प्रयागराज में आयोजित होने जा रहे महाकुंभ (Maha Kumbh) में देश-विदेश से आए साधु-संतों का कुंभ क्षेत्र में जमघट होने लगा है। सनातन धर्म के महात्म्य से प्रभावित कई विदेशी भी इस बार महाकुंभ में जूना अखाड़े में ब्रह्मचारी की दीक्षा लेकर सनातनी संत बन जाएंगे। फ्रांस की सबसे बड़ी मैथ की यूनिवर्सिटी सारबोर्न के गणित के प्रोफेसर फेड्रिक ब्रूनो अपनी नौकरी छोड़कर जूना अखाड़े का हिस्सा बन गए हैं।
प्रयागराज के त्रिवेणी तट पर लगने जा रहा ‘महाकुंभ’ (Maha Kumbh) इस बार भव्य और दिव्य होगा। सनातन धर्म के 13 अखाड़े, जो महाकुंभ में शुभ मुहूर्त में संगम में शाही स्नान करेंगे। महाकुंभ शुरू होने से पहले ही सनातन धर्म के वैभव इन अखाड़ों का वैभव और आकर्षण सात समंदर पार से आए विदेशियों को भी अपनी तरफ खींचने लगा है। ऐसे ही फ्रांस के नागरिक फेड्रिक ब्रूनो ने अभी से प्रयागराज महाकुंभ में डेरा डाल दिया था।
जूना अखाड़े से जुड़ रहे ब्रूनो
ब्रूनो अब गणित की दुनिया त्याग कर अध्यात्म की दुनिया में शामिल होना चाहते हैं। अपनी पत्नी और तीन बेटे-बेटियों के साथ गृहस्थ जीवन जी रहे फ्रांस के इस गणित के प्रोफेसर को जूना अखाड़े की सन्यासी की दीक्षा महाकुंभ में दी जाएगी। ब्रूनो का कहना है कि अंकों का गुणा-भाग जिंदगी में बहुत देख लिया, अब मन को सुकून चाहिए। इसलिए अब वह अध्यात्म की दुनिया से जुड़कर जूना अखाड़े से जुड़ रहे हैं। जूना अखाड़े के थाना पति घनानंद गिरी को अपना गुरु स्वीकार कर चुके प्रोफेसर ब्रूनो महाकुंभ में ब्रूनो गिरी बन जाएंगे।
योग के संयोग से ब्रूनो हुए सनातन धर्म के दीवाने
फ्रांस की सार बोर्न यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर ब्रूनो को अंकों की गणित और गणना से अब मन हट गया है। ब्रूनो अब जीवन के अंतिम सत्य की तलाश के लिए हिंदू सनातन धर्म की शरण में आए हैं। ब्रूनो के गुरु जूना अखाड़े में थानापति घनानंद गिरी बताते हैं कि ब्रूनो अक्सर हरिद्वार स्थित उनके आश्रम में आते थे, जहां वह योग की शिक्षा लेते थे। योग से ब्रूनो बहुत आकर्षित हुए।
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योग से जुड़ने के बाद ब्रूनो ने हिंदू धर्म शास्त्रों का अध्ययन किया। योग की पढ़ाई के समय ही ब्रूनो सनातन धर्म से जुड़ते गए। आखिरकार उन्होंने तय कर लिया कि अब वह सनातन धर्म की आस्था और समर्पण की दुनिया का हिस्सा बनेंगे। ब्रूनो कहते हैं कि गणित के प्रोफेसर की नौकरी करके उन्होंने जीवन में सभी सुख हासिल कर लिए। अब भौतिक दुनिया का आकर्षण उन्हें रास नहीं आता। उनके जीवन का अंतिम पड़ाव अब सनातन धर्म और उनके गुरु ही हैं।