इस साल महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का पावन पर्व 18 फरवरी को है। इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) ने साकार स्वरुप धारण किया था। उससे पहले वे परमब्रह्म सदाशिव थे।
भगवान शिव का स्मरण होते ही हाथों में त्रिशूल (Trishul) , डमरु, सिर पर जटा, गले में सांप पहने महादेव (Mahadev) की विराट छवि मन में बनती है। वे भूत हैं, भविष्य हैं और वर्तमान भी। वे काल से परे स्वयं महाकाल हैं। काल भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता, इसलिए वे महाकाल (Mahakal) हैं। उनके प्रमुख दो शस्त्र धनुष और त्रिशूल हैं। उनके हाथ में त्रिशूल रहता है। प्रश्न उठता है कि भगवान शिव के पास त्रिशूल कैसे आया? इसका क्या अर्थ और महत्व है? आइए जानते हैं इसके बारे में।
शिव के त्रिशूल का रहस्य
शिव पुराण में बताया जाता है कि सृष्टि के आरंभ के समय भगवान शिव ब्रह्मनाद से प्रकट हुए थे। उनके साथ ही तीन गुण रज, तम और सत गुण भी प्रकट हुए। ये तीनों ही भगवान शिव के शूल बनें, जिससे त्रिशूल बना। त्रिशूल शिव जी का प्रमुख अस्त्र है। यह तीन गुण रज, तम और सत का प्रतीक है। प्रारंभ से ही त्रिशूल भगवान शिव के साथ है। विष्णु पुराण के अनुसार, विश्वमकर्मा ने सूर्य के अंश से त्रिशूल का निर्माण किया था, जिसे उन्होंने भगवान शिव को दे दिया था।
रज, तम और सत गुण में संतुलन के बिना सृष्टि का संचालन नहीं हो सकता था। सृष्टि में संतुलन स्थापना के लिए भगवान शिव ने अपने हाथों में त्रिशूल धारण किया। इन तीनों गुणों में संतुलन के लिए महादेव ध्यान में मग्न रहते हैं।
इन तीन गुणों का समावेश त्रिशूल में है, यह इस बात को भी दर्शाता है कि भगवान शिव इन तीनों ही गुणों से ऊपर हैं क्योंकि उन्होंने इन पर विजय प्राप्त कर रखी है।
त्रिशूल को तीन काल से भी जोड़कर देखा जाता है। यह भूतकाल, भविष्य काल और वर्तमान काल का भी प्रतीक है। इस वजह से ही तो भगवान शिव त्रिकालदर्शी हैं। उनको भूत, भविष्य और वर्तमान की सभी चीजों के बारे में ज्ञात है।
कुछ लोग यह भी मानते हैं किै भगवान शिव का त्रिशूल तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी प्रतीक है। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से कई राक्षसों का वध किया था और सृष्टि में शांति स्थापित की थी।
भगवान शिव के भक्त अपने घरों में त्रिशूल रखते हैं। इसे रखने से घर की नकारात्मक शक्तियां दूर होती है। भय नहीं रहता है।