जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी जी का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के मंगल दिन बिहार के वैशाली कुंड ग्राम में हुआ था। महावीर स्वामी का जन्म महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के यहां हुआ था। 30 वर्ष की आयु में इन्होंने राज महलों के सुख को त्याग दिया और सत्य की खोज में जंगलों की ओर चले गए।
कहा जाता है कि तीर्थंकर का अवतार होते ही तीनो लोक आश्चर्यकारी आनंद से खलबला उठे। वैशाली में प्रभु जन्म से पूर्व चारों ओर नूतन आनंद का वातावरण छा गया। वैशाली कुंडलपुर की शोभा अयोध्या नगरी जैसी थी। उसमें तीर्थंकर के अवतार की पूर्व सूचना से संपूर्ण नगरी की शोभा में और भी वृद्धि हो गई थी।
महावीर स्वामी ने घने जंगलों में रहते हुए बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिसके पश्चात ऋजुबालुका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिसके पश्चात उन्होंने समाज के सुधार और लोगों के कल्याण के लिए उपदेश दिये। महावीर भगवान के जन्म के पावन अवसर को महावीर स्वामी की जयंती या जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस बार महावीर जयंती 25 अप्रैल 2021 दिन रविवार को मनाई जाएगी। जैन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए यह दिन बहुत ही खास होता है। इस दिन जैन मंदिरों में प्रार्थना और पूजा की जाती है। जैन समुदाय के द्वारा भगवान महावीर की झांकियां निकाली जाती हैं। लोग उनकी बताई गई शिक्षाओं का स्मरण करते हैं। तो चलिए जानते हैं महावीर स्वामी के प्रेरणादायक विचार।
अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। किसी के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और स्वयं भी शांति से जियो इसी में सभी का कल्याण है। इस संसार में जितने भी जीव हैं उनके प्रति दया भावना रखों।
महावीर स्वामी के अनुसार जिसक मन में सदैव धर्म रहता है और जो धर्म के मार्ग पर चलता है देवता भी उसे नमस्कार करते हैं। अहिंसा, तप और संयम ही धर्म है।
क्षमा के बारे में महावीर स्वामी ने कहा कि सभी जीवों से मेरा मैत्री भाव है मुझे किसी से कोई बैर भाव नहीं है मेरे द्वारा किए गए अपराध की मैं क्षमा मांगता हूं और उनके द्वारा किए गए अपराधों को क्षमा करता हूं। इस तरह से उन्होंने क्षमा मांगना और क्षमा करना दोनों ही गुणों के बारे में बताया है।
महावीर स्वामी के अनुसार सत्य ही सच्चा तत्व है जो सत्य को जान लेता है वह मृत्यु को भी तैरकर पार कर जाता है।
अर्थात कोई भी वस्तु संचित न करना। किसी के प्रति लोभ मोह न रखना। जो व्यक्ति सजीव या निर्जीव वस्तुओं का संग्रह करता है या उसे करने की सम्मति देता है। उसे दुखों से छुटकारा प्राप्त नहीं होता है।