यूपी के सबसे बड़े शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े में डीएम ने बड़ी कार्रवाई करते हुए तत्कालीन सहायक शस्त्र लिपिक को बर्खास्त कर दिया है। आरोपी ने डीएम के हस्ताक्षर स्कैन करके 90 असलहों के लाइसेंस जारी कर दिए थे। पूरे मामले की जांच एसीएम सप्तम से कराई गई, जिसमें लिपिक के खिलाफ ऐसे 15 मामले सामने आए, जिसमें उसे दोषी माना गया है।
2019 में कलेक्ट्रेट के असलहा विभाग से अफसरों की नाक के नीचे फर्जी तरीके से 90 असलहा लाइसेंस बनाए गए थे। फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद तत्कालीन एसीएम पष्ठम हरिश्चंद्र सिंह ने कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई थी। तत्कालीन डीआईजी अनंत देव ने एसआईटी जांच बैठाई थी। एसआईटी ने खुलासा करके कलेक्ट्रेट के तत्कालीन सहायक शस्त्र लिपिक विनीत तिवारी, कलेक्ट्रेट के कारीगर जितेंद्र, मुकुल, जैकी, विशाल को गिरफ्तार किया था।
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28 अगस्त 2019 को विनीत को निलंबित किया गया था, अब सभी आरोपित जमानत पर हैं। विनीत ने दोबारा तैनाती के लिए कलेक्ट्रेट में प्रार्थना पत्र दिया था। उधर, फर्जीवाड़े की जांच पूर्व में एसीएम सप्तम और वर्तमान में एसडीएम नर्वल अमित ओमर ने की थी। कई बार स्पष्टीकरण मांगने के बावजूद विनीत ने जवाब नहीं दिया। उस पर जांच अधिकारी ने 15 तरह के आरोप लगाए थे। डीएम आलोक तिवारी ने कार्रवाई की पुष्टि की है।
खुद को बेकसूर साबित करने के लिए आरोपी विनीत ने जांच के दौरान जहर खा लिया था। वह कई दिन तक अस्पताल में भर्ती रहा। ठीक होते ही वह फरार हो गया था। एसआईटी ने कई दिन तलाश किया और चित्रकूट से गिरफ्तार किया था। वह एक साल से ज्यादा समय तक जेल में रहा।
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विनीत ने फर्जी लाइसेंस बनवाने के लिए मनमाने पैसे वसूले थे। आर्किटेक्ट, टेनरी मालिक, फर्नीचर कारोबारी, फल व्यापारी और बिल्डरों के फर्जी लाइसेंस बनाए। एक लाइसेंस के बदले में उसने एक से पांच लाख रुपए तक वसूले थे। एसआईटी ने जांच के बाद इसकी पुष्टि की थी।