सियाराम पांडे ‘शांत’
भारत को आत्मनिर्भर बनाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प है और अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए वे नित्य प्रति कुछ अलहदा करने की कोशिश करते हैं। कुछ नवोन्मेष करते हैं। उनका मानना है कि विकास चहुंमुखी होना चाहिए। नदी अपने प्रवाह की बदौलत ही स्वच्छ रह पाती है। प्रवाह अवरुद्ध होने पर जल सड़ने लगता है। चतुर्मुखी विकास के लिए दृष्टि जरूरी होती है। नीर-क्षीर विवेक जरूरी होता है। सम्यक विकास के लिए चांचल्य की नहीं, धैर्य की जरूरत होती है। संयम की जरूरत होती है। विकास का सिलसिला एक जगह भी अगर रुका तो वह देश के व्यापक हित में नहीं होगा। वे हर व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। वे भारत भूमि का एक भी कोना विकास के प्रभाव से अछूता नहीं रहने देना चाहते।
प्रधानमंत्री जल-थल और नभ तीनों ही क्षेत्रों में विकास को गति दे रहे हैं। हाल ही में अंतरिक्ष में 19 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर उन्होंने पूरी दुनिया को इस बात का अहसास तो करा ही दिया है कि भारत के लिए असंभव कुछ भी नहीं है। पोत परिवहन एवं जल मार्ग मंत्रालय द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘मैरीटाइम इंडिया शिखर सम्मेलन-2021’ का वर्चुअली उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समुद्री क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का न केवल आह्वान किया है बल्कि समुद्री उत्पादन क्षेत्र में विकास की असीम संभावनाओं पर भी उन्होंने देश का ध्यान आकृष्ट किया है। 50 देशों के एक लाख से ज्यादा प्रतिभागियों ने इस समिट के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि भारतीय सभ्यताओं का विकास देश के विशाल समुद्री तटों पर हुआ है। भारत का समृद्ध समुद्री इतिहास ही है जिसने इस देश को हजारों सालों से दुनिया से जोड़े रखा है। इसलिए इस परंपरा को अब पूरी ताकत के साथ और अधिक समृद्ध बनाना जरूरी हो गया है। उन्होंने विश्वास दिलाया है कि केंद्र सरकार समुद्री उत्पादों का न केवल भरपूर इस्तेमाल कर रही है बल्कि इस माध्यम से देश को आत्मनिर्भर भी बना रही है। इस निमित्त समुद्री क्षेत्रों का तेजी से विकास भी किया जा रहा है। इस क्रम में सागर माला परियोजना 2016 में आरंभ की गयी थी जिनके माध्यम से बंदरगाहों का तेजी से विकास हो रहा है। समुद्री क्षेत्र में और भी कई योजनाओं पर काम चल रहा है।
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गौरतलब है कि 25 मार्च 2015 को कैबिनेट ने भारत के 12 बंदरगाहों और 1208 द्वीप समूह को विकसित करने के लिए सागर माला परियोजना को मंजूरी दी थी। यह परियोजना 31 जुलाई 2015 को कर्नाटक में नौवहन मंत्रालय द्वारा होटल ताज वेस्ट एंड, बैंगलोर में शुरू की गई थी। कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के 7,500 किलोमीटर लंबे समुद्र तट, 14,500 किलोमीटर के संभावित जलमार्ग और प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों पर रणनीतिक स्थान का उपयोग कर देश में बंदरगाह के विकास को बढ़ावा देना है। सागर माला के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने 36 परियोजना प्रस्तावित की हैं। भारतीय तटीय क्षेत्र को तटीय आर्थिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाना है। 20 जुलाई 2016 को भारतीय मंत्रिमंडल ने एक हजार करोड़ रूपए की प्रारंभिक प्राधिकृत शेयर पूंजी और 90 करोड़ रुपये की साझा पूंजी के साथ सागरमाला डेवलपमेंट कंपनी को मंजूरी प्रदान की थी, जिससे पोर्ट-डिमांड के विकास को बढ़ावा मिला। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि सागर माला परियोजना के तहत बंदरगाह के विकास के लिए सरकार की महत्वाकांक्षी गति से 2025 तक रसद लागत में 40 हजार करोड़ रुपये की बचत होगी। सागर माला कार्यक्रम के अंतर्गत, 2015 से 2035 के बीच करीब 7.98500 लाख करोड़ अनुमानित निवेश पर 415 परियोजनाओं को पूर्ण किया जाएगा। इन परियोजनाओं में बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और नए बंदरगाह का विकास, बंदरगाह की कनेक्टिविटी बढ़ाने, बंदरगाह से जुड़े औद्योगीकरण और चरण-वार कार्यान्वयन के लिए तटीय सामुदायिक विकास जैसे काम होने हैं।
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विकथ्य है कि डेनमार्क मैरिटाइम शिखर सम्मेलन का सहयोगी देश है। सम्मेलन में 115 समुद्री क्षेत्रों के विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय वक्ता हिस्सा ले रहे हैं । जाहिर है , इस सम्मेलन में जो विचार मंथन होगा, उससे जो नवनीत निकलेगा, वह समुद्री क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने और देश को समुद्री उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सहायक सिद्ध होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सरकार न सिर्फ समुद्री उत्पादों का भरपूर इस्तेमाल करने पर जोर दे रही है बल्कि समुद्री तटों के विकास के साथ ही रोजगार की संभावनाओं को भी तलाश रही है। जल परिवहन भी ध्यान दे रही है। 2030 तक 23 जलमार्गों का विकास कर लेने का हमारा लक्ष्य है। प्रधानमंत्री मानते हैं कि जलमार्ग से यातायात सस्ता भी है और पर्यावरण के अनुकूल भी है। जलमार्ग बंगलादेश, म्यामार, भूटान तथा नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा देने में सहायक हो सकते हैं।सी प्लेन जैसी योजनाएं आसानी से यहां लोगों की आवाजाही में मददगार बन सकती हैं। देश के कई स्थानों पर सी प्लेन योजना को संचालित करने की तैयारी चल रही है। सरकार जहाजों के निर्माण और उनकी मरम्मत के काम पर भी ध्यान दे रही है। बंदरगाहों को आधुनिक बनाया जा रहा है और इससे जहाजों के आवाजाही के समय की बचत हो रही है।
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उन्होंने यकीन जताया है कि यह शिखर सम्मेलन समुद्री क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों को एक साथ लाएगा और भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा। उन्होंने विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। भारत सरकार घरेलू शिप बिल्डिंग और शिप रिपेयर मार्केट पर भी ध्यान दे रही है। डोमेस्टिक शिप प्रोडक्शन को प्रोत्साहित करने के लिए हमने भारतीय शिपयार्ड के लिए जहाज निर्माण वित्तीय सहायता नीति को मंजूरी दी। 78 पोर्ट के बगल में पर्यटन विकसित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य मौजूदा प्रकाश स्तंभों और इसके आसपास के क्षेत्रों को अद्वितीय समुद्री पर्यटन स्थलों में विकसित करना है। भारतीय बंदरगाहों ने इनबाउंड और आउटबाउंड कार्गो के लिए वेटिंग टाइमिंग घटा दी है। पोर्ट और प्ले-एंड-प्ले इन्फ्रास्ट्रक्चर में स्टोरेज की क्षमता बढ़ाने के लिए काफी निवेश हुआ है। इससे उद्योगों को पोर्ट लैंड के लिए आकर्षित किया जा सकेगा। बकौल प्रधानमंत्री, 2014 में प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता जो लगभग 870 मिलियन टन प्रति वर्ष थी, जो अब बढ़कर लगभग 1550 मिलियन टन वार्षिक हो गई है। इस उत्पादकता लाभ से न केवल हमारे बंदरगाहों को बल्कि समग्र अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलता है।
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केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया मानें तो समिट समुद्री क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगी। देश में बंदरगाहों का आधुनिकीकरण हो रहा है। भारत सरकार ने इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए मैरीटाइम विजन तैयार किया है। भारतीय समुद्री क्षेत्र में आधुनिकीकरण, विकास, क्रूज पर्यटन, रोपैक्स फेरी सेवा, सीप्लेन सेवा की मांग बढ़ रही है। भारतीय बंदरगाह बुनियादी ढंाचा के विकास तथा माल ढुलाई आवाजाही आदि के मामले में काफी पीछे है। सकल घरेलू उत्पाद में जहां रेलवे की हिस्सेदारी लगभग 9 प्रतिशत और सड़क परिवहन की 6 प्रतिशत है, वहीं बंदरगाहों का हिस्सा लगभग 1 प्रतिशत है। वर्तमान समय में भारतीय बंदरगाह मात्रा की दृष्टि से देश के निर्यात व्यापार का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संभालते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए भारत सरकार द्वारा सागरमाला परियोजना की शुरुआत की गई।
हालांकि इस परियोजना की परिकल्पना सर्वप्रथम तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 15 अगस्त, 2003 को प्रस्तुत की थी। इस योजना के तहत 7500 किमी. लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है। इस योजना में 12 स्मार्ट शहर तथा विशेष आर्थिक जोन को शामिल किया गया है। योजना के अंतर्गत आठ तटीय राज्यों को चिन्हित किया गया है जिनमें गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल शामिल हैं इस विषम कोरोनाकाल में जब भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देश महामारी से डरे-सहमे हुए हैं, ऐसे में भीशिखर सम्मेलन का आयोजन और देश को आत्मनिर्भरता प्रदान करने की सोच काबिले तारीफ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह शिखर सम्मेलन भारत की विकासोन्मुखी उड़ान भरने में सहायक होगा। यह न केवल देश को आर्थिक और सामारिक मजबूती देगा बल्कि दुनिया से भारत के रिश्तों को और अधिक प्रगाढ़ भी बनाएगा। अटल बिहारी वाजपेयी की समुद्री विकास की सोच दरअसल अब पूरी हो रही है, यह कहने में किसी को भी गुरेज नहीं होना चाहिए।