उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने 23 जुलाई से सम्मेलन करने का ऐलान किया था। हालांकि बसपा के कल से यूपी के अयोध्या में होने जा रहे ब्राह्मण सम्मेलन पर खतरा मंडराने लगा है, क्योंकि 2013 में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजनीतिक दलों के जाति आधारित सम्मेलनों पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया था।
यही नहीं, हाईकोर्ट की वो अंतरिम रोक अब भी जारी है। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिट पिटीटिशन नंबर 5889 /2013 में अंतरिम रोक का आदेश पारित किया था। हाईकोर्ट में अधिवक्ता मोतीलाल यादव की ओर से ये रिट याचिका दाखिल हुई थी। इस रिट याचिका पर हाईकोर्ट के उस अंतरिम आदेश के आधार पर जिले के डीएम जाति आधारित सम्मेलनों पर रोक लगा सकते हैं। अब ये देखना काफी महत्वपूर्ण होगा कि क्या जिले के डीएम उस अंतरिम आदेश के तहत जाति आधारित सम्मेलनों पर रोक लगाते हैं या नहीं।
वहीं, 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने यूपी के हर जिले में ब्राह्मण सम्मेलन करने की घोषणा की थी और बसपा के राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्रा को इस सम्मेलन की कमान सौंपी थी। दावा किया जाता है कि 2007 में दलित, ब्राह्मण, मुस्लिम वोटों की सोशल इंजीनियरिंग के जरिए यूपी में सरकार बनाई थी।
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यकीनन उस दौर के बाद से ही ब्राह्मणों को बसपा का करीबी माना जाने लगा था, लेकिन 2012 में अखिलेश यादव और 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद बसपा की ये ब्राह्मण और सोशल इंजीनियरिंग की थ्योरी कमजोर होने लगी थी, लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव की आहट होने के साथ ही बसपा ने अपना ब्राह्मण कार्ड चल दिया।
यही नहीं, मायावती ने कहा था कि मुझे पूरा भरोसा है कि अब ब्राह्मण समाज के लोग भाजपा के किसी भी तरह के बहकावे में नहीं आएंगे। ब्राह्मण समाज को फिर से जागरूक करने के लिए 23 जुलाई से अयोध्या से एक अभियान शुरू किया जा रहा है। हालांकि अब 2013 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के चलते ब्राह्मण सम्मेलनों पर तलवार लटक गई है।