हिन्दी के साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद को हम लोग तमाम कहानियों के लिए जानते हैं। लेकिन हममे से बहुत कम लोगों को मालूम है कि वो क्रिकेट के भी शौकीन थे। उन्होंने एक बार नहीं कई बार अपनी कहानियों और लेखों के जरिए क्रिकेट पर लेखनी चलाई। महाराजाओं के क्रिकेट कप्तान बनने की खिल्ली उड़ाई।
प्रेमचंद ने 1935 में एक कहानी लिखी, वो उस समय दौरे पर आई आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम और भारतीय टीम के बीच मैचों पर लिखी गई थी। लेकिन बहुत रोचकता के साथ प्रेमचंद ने इसे संस्मरण का जामा पहनाते हुए कहानी लिखी थी। 1935-36 में जैक राइडर की अगुवाई में एक आस्ट्रेलियाई टीम भारत आई और उसने यहां कई फर्स्ट क्लास के मैच खेले थे।
इस टूर को प्राइवेट तौर पर आर्गनाइज किया गया था। इस पर आस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड की कोई सहमति नहीं थी। इस दौरे में जितना पैसा खर्च हुआ, वो महाराजा पटियाला ने किया। भारत की टीम को नाम दिया गया आल इंडिया इलेवन। तब तक भारतीय टीम को टेस्ट का दर्जा नहीं मिला था। आस्ट्रेलिया और भारत के बीच 16 फर्स्ट क्लास के मैच खेले गए।
इससे पहले प्रेमचंद ने 12 अक्तूबर 1932 को ‘जागरण’ में छपे एक संपादकीय में भारतीय क्रिकेट टीम के इंग्लैंड दौरे का विवरण लिखा था। प्रेमचंद ने इसमें लिखा कि भारतीय क्रिकेट टीम को भारतीय हॉकी टीम जितनी सफलता भले ही न मिली हो, लेकिन फिर भी उसकी सफलता महत्त्वपूर्ण है.।
भारतीय क्रिकेट टीम की सफलता पर ख़ुशी जाहिर करते हुए प्रेमचंद ने लिखा था की ‘भारतीय क्रिकेट टीम दिग्विजय करके लौट आयी। यद्यपि उसे उतनी शानदार कामयाबी हासिल नहीं हुई, फिर भी इसने इंग्लैंड को दिखा दिया कि भारत खेल के मैदान में भी नगण्य नहीं है। सच तो यह है कि अवसर मिलने पर भारत वाले दुनिया को मात दे सकते हैं, जीवन के हरेक क्षेत्र में क्रिकेट में इंग्लैंड वालों को गर्व है। इस गर्व को अबकी बड़ा धक्का लगा होगा। हर्ष की बात है कि वाइसराय ने टीम को स्वागत का तार देकर सज्जनता का परिचय दिया है।’
प्रेमचंद ने अपनी साहित्यिक कृतियों में भी क्रिकेट के बारे में लिखा है। उपन्यास ‘वरदान’ में प्रेमचंद ने अलीगढ़ और प्रयाग के छात्रों के बीच हुए क्रिकेट मैच का जीवंत वर्णन किया है। बल्कि इस कहानी में तो ऐसा लगा मानो वो कहीं कहीं गेंद के साथ कमेंटरी की विधा में आंखों देखा हाल लिख रहे हों।
जिस कहानी क्रिकेट का मैच जिक्र ऊपर किया गया, वो प्रेमचंद के निधन के बाद कानपुर से छपने वाले उर्दू पत्र ‘ज़माना’ में जुलाई 1937 में छपी थी। डायरी शैली में लिखी गई यह कहानी जनवरी 1935 से शुरू होती है। इस कहानी के मुख्य पात्र हैं भारतीय क्रिकेटर जफर और इंग्लैंड से डॉक्टरी की पढ़ाई कर भारत लौटी हेलेन मुखर्जी।