सियाराम पांडेय ‘शांत’
गंगा के निर्मलीकरण को लेकर जहां उत्तर प्रदेश की योगी सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। प्रदेश के हर उन शहरों और गांवों में गंगा आरती किए जाने की घोषणा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही कर चुके हैं। इसके पीछे सरकार का एक मात्र अभीष्ठ यही रहा है कि गंगा के प्रति लोगों में न केवल आदर भाव बढ़े बल्कि गंगा को स्वच्छ बनाए रखने के प्रति लोग गंभीर हों। इसका असर भी हुआ है।
उत्तर प्रदेश में जगह-जगह गंगा आरती आरंभ भी हो गई है। कुछ जगहों पर गंगा आरती की योजना भी बनने लगी है। यह एक अच्छी पहल है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन इसके साथ ही प्रशासन को इस बात की चिंता भी सताने लगी है कि कहीं गंगा आरती कराने वाली संस्थाएं गंगा के घाटों पर कब्जा न कर लें। यह चिंता घाट के पंडों और पुजारियों को भी हो सकती है। वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा के आदेशों को कमोवेश इन्हीं चिंताओं के इर्द-गिर्द देखा जा सकता है।
वाराणसी में गंगा तट पर सामूहिक आरती के लिए अब नगर निगम में पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया गया है । हालांकि नयी व्यवस्था 31 मार्च के बाद लागू होगी लेकिन गंगा प्रेमियों पर इसका असर अभी से देखा जाने लगा है। जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने इस संबध में वाराणसी नगर निगम को एक निर्देश जारी किया, जिसमें पंजीकरण आवेदन पत्र प्रारूप समेत अन्य तैयारियां 31 मार्च तक पूरी करने को कहा गया है। बिना पंजीकरण घाटों पर कहीं भी आरती करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पंजीकरण एक वर्ष के लिए होना है तथा तय शर्तों का पालन करने वाली संस्थाओं एवं व्यक्ति समूहों को अगले साल के लिए पंजीकरण का नवीनीकरण कराना होगा।
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देश में जिस तरह अतिक्रमण की समस्याएं बढ़ रही हैं। आतंकी घटनाएं बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए यह निर्णय ठीक भी है और समीचीन भी है लेकिन एक सच यह भी है कि इससे आरती के आयोजन से पूर्व लोग हिचकेंगे भी और सोच-विचार को भी मजबूर होगे। गौरतलब है कि गंगा नदी के घाटों पर 17 फरवरी की शाम तक जहां-जहां आरती हुई थीं, उनकी सूची तैयार की जा रही है। उन संस्थाओं एवं व्यक्ति समूहों को उनका आगामी एक माह में उनका पंजीकरण सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए थे। इस निमित्त संबंधित प्रपत्र भी नगर निगम की तरफ से तैयार कर जारी करने को कहा गया है ।
उन्होंने निर्देश दिया है कि इसके लिए नगर निगम के तहत गंगा घाटों के लिए एक नोडल अधिकारी भी नामित किया जाए। प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए जो भी संस्था या व्यक्ति घाटों पर आरती के लिए आवेदन करें अथवा नवीनीकरण कराएं । उनकी पुलिस (एलआईयू) के माध्यम से जांच तथा अन्य आवश्यक जांच पूरी कराते हुए उनके नवीनीकरण पर निर्णय लिया जाए। 31 मार्च के बाद केवल वे व्यक्ति समूह या संस्था घाटों पर आरती का आयोजन कर सकेंगे, जिनका पंजीकरण नगर निगम के द्वारा किया गया होगा।
इसके लिए आवेदन करते समय घाट पर आरती के लिए प्रयोग किया जाने वाले स्थान, आरती किये जाने वाले व्यक्तियों की संख्या आदि का उल्लेख भी आवेदन करने समय करना होगा। पंजीकरण व्यवस्था के पीछे उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था आरती करने के नाम पर घाटों पर अतिक्रमण न करें तथा किसी भी दशा में घाटों का स्वामित्व बाधित करके उनके सार्वजनिक प्रयोग में बाधा डालने का कार्य न कर सके। गंगा नदी के किनारे के सार्वजनिक घाट स्थायी रूप से सार्वजनिक सम्पत्ति हैं। इसका स्वामित्व राज्य सरकार का है। कुछ वर्ष पूर्व ये घाट संबंधित ग्राम समाज की सम्पत्ति रही होगी, लेकिन वर्तमान में नगर निगम क्षेत्र में स्वामित्व होने की वजह से इसका प्रबंधन नगर निगम के पास है।
स्पष्ट है कि वर्तमान में इन घाटों का स्वामित्व राज्य सरकार का है तथा इसका प्रबंधन भी नगर निगम के पास है। जिलाधिकारी ने नगर आयुक्त को ध्यान दिलाया है कि कभी-कभी यह देखने को मिलता है कि कुछ लोग इन घाटों पर आरती को लेकर विवाद करते हैं। कुछ लोग नई आरती प्रारम्भ करते हैं तथा कई उनका विरोध करते हैं। इस बारे में नगर निगम को बिल्कुल स्पष्ट व्यवस्था करनी चाहिए कि घाटों पर जहां भी आरती होती है, उनका रजिस्ट्रेशन किया जाए। संबंधित संस्थाओं एवं व्यक्ति समूह को आरती के लिए स्थान का आवंटन एक-एक वर्ष के लिए किया जाना चाहिए। इसका नवीनीकरण प्रत्येक वर्ष होना जाना चाहिए। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि किसी भी घाट पर किसी भी निजी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा भविष्य में कोई भी सामूहिक आरती बिना नगर निगम की अनुमति के न की जाये।
यह भी सुनिश्चित किया जाये कि एक ही संस्था या व्यक्तियों का समूह एक से अधिक घाटों पर आरती न करें। कायदतन तो प्रदेश के सभी उन जिलों में जहां से गंगा मुजरती हैं, इस तरह के निर्णयहोने चाहिए लेकिन इसका सबसे बडा़ नुकसान यह है कि गंगा आरती के इच्छुक श्रद्धालु इसे अपनी धार्मिक आजादी पर हमला न मान मान बैठें और अगर ऐसा होता है या कोई इसे अगर राजनीतिक हवा देने की जरा भी कोशिश करे तो यह आदेश सरकार के गले की हड्डी बन सकता है। गंगा के प्रति लोगों की जो आस्था है, उसे देखते हुए किसी भी तरह का निर्णय करने से पहले सरकार और उसके मातहत अधिकारियों को एकबारगी आत्ममंथन जरूर किया जाना चाहिए।