हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली एकादशी को सभी एकादशी में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस एकादशी का व्रत साल की सभी 24 एकादशी के व्रत के बराबर माना जाता है। यह एकादशी वर्ष की सबसे कठिन मानी जाती है। इस एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।
पांडव भाइयों ने भी रखा था निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत-
मान्यता है कि पांडव भाइयों में से भीम ने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बगैर जल ग्रहण किए एकादशी का व्रत किया था। इस व्रत को करने के कारण भीम को मोक्ष और लंबी आयु का वरदान प्राप्त हुआ था।
इस नियम का पालन करना होता है जरूरी
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत में जल का त्याग करना होता है। इस व्रत में व्रती पानी का सेवन नहीं कर सकता है। व्रत का पारण करने के बाद ही व्रती जल का सेवन कर सकता है।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत को लेकर इस बार संशय की स्थिति-
निर्जला एकादशी व्रत को लेकर इस बार संशय बना हुआ था। शास्त्रों के अनुसार स्मार्त यानि गृहस्थ लोग 6 जून शुक्रवार को व्रत रखेंगे और अगले दिन यानी 7 जून को पारण करेंगे। जबकि वैष्णव यानि साधु सन्यासी समाज के लोग 7 जून को व्रत करेंगे और 8 जून को व्रत का पारण करेंगे।
मुहूर्त-
एकादशी तिथि प्रारम्भ – जून 06, 2025 को 02:15 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – जून 07, 2025 को 04:47 ए एम बजे
7 जून को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01:44 पी एम से 04:31 पी एम
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 11:25 ए एम