बिहार के मुख्यमंत्री पद की सातवीं बार जिम्मेदारी संभालने वाले श्री नीतीश कुमार ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन में अब तक अपनी शर्तों पर ही राजनीति की है, लेकिन उनके लिए इस बार नए तेवर वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ सरकार चलाने की चुनौती एक कड़ा इम्तिहान होगा।
बिहार में पटना जिले के बख्तियारपुर में एक मार्च 1951 को एक साधारण परिवार में जन्मे श्री कुमार के पिता स्व. कविराज राम लखन सिंह स्वतंत्रता सेनानी और वैद्य थे । श्री कुमार बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज पटना (अब एनआईआईटी) में पढ़ायी के दौरान ही लोक नायक जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर वर्ष 1974 के छात्र आंदोलन में कूद पड़े थे। पढ़ायी पूरी करने के बाद जब वर्ष 1977 का चुनाव हुआ तब वह जनता पार्टी के टिकट पर नालंदा जिले के हरनौत विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा । इसके बाद 1980 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा तब उनके परिवार वालों ने उन पर राजनीति छोड़कर नौकरी के लिए दबाव बनाना शुरु कर दिया लेकिन श्री कुमार नहीं माने और राजनीति में डटे रहे ।
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इसके बाद श्री कुमार को पहली बार 1985 के विधानसभा चुनाव में हरनौत से ही सफलता मिली और उसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में वह बाढ़ संसदीय क्षेत्र से चुनकर लोकसभा पहुंचे । श्री कुमार 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री बने । वर्ष 1991 के मध्यावधि चुनाव में वह फिर से लोकसभा के सदस्य चुने गये।
श्री लालू प्रसाद यादव से राजनीतिक मतभेद के कारण वर्ष 1994 में जनता दल से अलग होकर श्री कुमार ने श्री जार्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में समता पार्टी बनाकर 1995 का विधानसभा चुनाव लड़ा तब उनकी पार्टी मात्र सात सीट पर ही जीत हासिल कर सकी । श्री कुमार ने इस हार से सबक लेते हुए लालू विरोधी मतों के विभाजन को रोकने के इरादे से वर्ष 1996 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठजोड़ कर लिया । श्री कुमार का यह फार्मूला कामयाब रहा और वह उसके बाद से राजनीतिक बुलंदियों को छूने लगे ।
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श्री कुमार वर्ष 1996 ,1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में विजयी हुये । श्री कुमार ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वर्ष 1998 में रेल मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री के अतिरिक्त प्रभार संभाला । इसके बाद श्री कुमार 1999 में फिर से बनी वाजपेयी सरकार में भूतल परिवहन और कृषि मंत्री बने। वर्ष 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तब सबसे बड़े गठबंधन के रुप में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सरकार बनाने का न्यौता मिला और श्री कुमार पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण विधानसभा में शक्ति परीक्षण से पहले ही सात दिनों के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था । श्री कुमार के लिए यह बड़ा राजनीतिक झटका था।
इसके बाद श्री कुमार फिर से केन्द्र की राजनीति में लौट गये और वर्ष 2000 से लेकर 2004 तक केन्द्र में कृषि मंत्री और रेल मंत्री के पद पर रहे । वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में श्री कुमार बाढ़ संसदीय सीट से चुनाव हार गये लेकिन नालंदा संसदीय सीट से विजयी हुए । केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के बाद श्री कुमार पूरी तरह बिहार की राजनीति पर ध्यान केन्द्रित करने लगे । अगले वर्ष ही 2005 के फरवरी में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और कोई भी दल सरकार बनाने में सफल नहीं रहा तब नवम्बर 2005 में फिर से विधानसभा का चुनाव कराया गया और उस चुनाव में श्री कुमार के नेतृत्व वाले राजग को स्पष्ट बहुमत मिल गया और वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने ।
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मुख्यमंत्री के रूप में विकास पुरुष की छवि बना चुके श्री कुमार के नेतृत्व में जब राजग ने 2010 का विधानसभा चुनाव लड़ा तो उसे दो-तिहाई बहुमत हासिल हुआ । श्री कुमार ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी संभाली । श्री कुमार ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए श्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश किये जाने की कोशिशों के विरोध में भाजपा से 17 साल पुराना अपना नाता तोड़कर एक बड़ा राजनीतिक जोखिम उठाया ।
भाजपा से नाता टूटने के बाद अल्पमत में आयी अपनी सरकार को श्री कुमार ने निर्दलीय और अन्य दलों के बाहर से समर्थन के बल पर किसी तरह से बचा कर रखा । इसके बाद जब वर्ष 2014 का लोकसभा हुआ तो श्री कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को करारी हार का सामना करना पड़ा । इस हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए श्री कुमार ने 17 मई 2014 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और अपने भरोसेमंद महादलित नेता जीतन राम मांझी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन छह माह के अंदर ही श्री कुमार को लगने लगा कि उन्होंने श्री मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर एक बड़ी राजनीतिक भूल कर दी । करीब 15 दिनों के राजनीतिक ड्रामे के बाद श्री मांझी ने इस्तीफा दिया और 22 फरवरी 2015 को श्री कुमार ने चौथी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला।
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इसके बाद वर्ष 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में श्री कुमार की पार्टी जदयू ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ मिलकर राजग के विरोध में चुनाव लड़ा। राज्य में तब तक राजनीतिक माहौल श्री कुमार के लिए बड़ा विकट हो चुका था लेकिन श्री कुमार ने हिम्मत नहीं हारी और इसे चुनौती के रूप में लिया। राजनीतिक गलियारे में श्री कुमार के युग को समाप्त माना जाने लगा था लेकिन श्री कुमार ने जिस सोशल-पॉलिटिकल इंजीनियरिंग और विरोधी मतों के बिखराव को रोक कर जीत हासिल करने के फार्मूले के तहत श्री लालू प्रसाद यादव के 15 वर्ष के शासन का अंत किया था उसी फार्मूले को इस बार के विधानसभा चुनाव में अपना कर ..मोदी लहर.. को समाप्त कर दिया । श्री कुमार के इसी फार्मूले ने उन्हें भाजपा विरोधी दलों के राष्ट्रीय नायक के रूप में उभारा ।
इस बार श्री कुमार की सरकार करीब 20 महीने ही चल पाई । दरअसल सरकार के कार्यों में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का बढ़ते हस्तक्षेप की वजह से पहले से ही असहज महसूस कर रहे श्री कुमार को राजद से नाता तोड़ने का तब बहाना मिल गया जब लालू परिवार के खिलाफ मंत्री पद और सरकारी नौकरी के बदले जमीन-फ्लैट लिखवाने का मामला भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने उजागर किया तथा रेलवे टेंडर घोटाला की जांच शुरू हुई । इसपर श्री कुमार ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव से जनता के समक्ष स्थिति स्पष्ट करने को कहा लेकिन जब वह ऐसा नहीं कर सके तो उन्होंने 26 जुलाई 2017 को महागठबंधन से नाता तोड़ते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया ।
इसके बाद तुरंत भाजपा ने श्री कुमार को समर्थन देने की घोषणा कर दी और 24 घंटे के अंदर ही श्री कुमार ने छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । इसके साथ ही फिर से बिहार में राजग सरकार की वापसी हो गई ।