भारत के सैन्य युद्ध अभियानों की कहानियां अब मुंह जुबानी नहीं रहेंगी बल्कि संकलित करके एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में जल्द ही लोगों के सामने आएंगी।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को सैन्य इतिहास लिखे जाने के लिए एक नीति को मंजूरी दे दी है। कारगिल युद्ध के दौरान मिले अनुभवों का विश्लेषण करने और भविष्य में गलतियों को रोकने के लिए सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता वाली कारगिल समीक्षा समिति ने भी युद्ध का इतिहास लिखे जाने की सिफारिश की थी।
दरअसल कारगिल युद्ध के बाद के. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक ‘कारगिल समीक्षा समिति’ बनाई गई थी। इस समिति के साथ ही एनएन वोहरा समिति ने भी युद्ध के दौरान मिले अनुभवों का विश्लेषण करने और भविष्य में गलतियों को रोकने के लिए युद्ध का इतिहास स्पष्ट नीति के साथ लिखे जाने के लिए सिफारिश की थी। इन सिफारिशों में 1999 के कारगिल युद्ध के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के नजरिये से भी युद्ध का आधिकारिक इतिहास लिखे जाने का उल्लेख किया गया था। सैन्य युद्धों का आधिकारिक इतिहास लोगों को सही जानकारी देगा और साथ ही इससे अकादमिक शोध के लिए प्रामाणिक सामग्री भी मिलेगी।
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने युद्ध संचालन इतिहास के संग्रह, अवर्गीकरण और संकलन एवं प्रकाशन संबंधी नीति को मंजूरी दे दी है। मंजूर की गई नीति के अनुसार रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाला प्रत्येक संगठन उचित रखरखाव, अभिलेखीय और इतिहास लिखने के लिए इतिहास विभाग को युद्ध डायरी, कार्यवाही के पत्र और परिचालन रिकॉर्ड बुक आदि सहित रिकॉर्ड हस्तांतरित करेगा। इतिहास प्रभाग युद्ध संचालन इतिहास के संकलन, अनुमोदन और प्रकाशन के दौरान विभिन्न विभागों के साथ समन्वय के लिए जिम्मेदार होगा। नीति के अनुसार अभिलेखों को सामान्यतः 25 वर्षों में अवर्गीकृत किया जाना चाहिए। 25 वर्ष से अधिक पुराने अभिलेखों का अभिलेखीय विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
युद्ध संचालन का इतिहास संकलित करने के लिए रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जायेगा। समिति में प्रमुख सैन्य इतिहासकारों के साथ-साथ तीनों सेनाओं के प्रतिनिधियों, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा। नीति में युद्ध इतिहास के संकलन और प्रकाशन के संबंध में स्पष्ट समय सीमा भी निर्धारित की गई है। युद्ध या ऑपरेशन पूरा होने के दो साल के भीतर समिति का गठन किया जाना चाहिए। इसके बाद अभिलेखों का संग्रह और संकलन तीन वर्षों में पूरा किया जाना चाहिए। इस तरह पांच साल के भीतर युद्ध का इतिहास संकलित होने के बाद भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए।