राजधानी दिल्ली से लेकर देश के हर शहर में अस्पताल सोशल मीडिया पर हर दिन आग्रह कर रहे हैं ऑक्सीजन सप्लाई को नियमित किया जाये क्योंकि अनियमित सप्लाई से त्रासदीपूर्ण मौतें हो रही हैं। इन मौतों की जवाबदेही किसकी है? इनके ‘कत्ल का मुकदमा किसपर चलाया जाये?
पिछले कुछ सप्ताह के दौरान इतना तो स्पष्ट हो गया है कि दोनों केंद्र व राज्यों ने कोविड की दूसरी लहर के लिए कोई तैयारी नहीं की थी, शायद उनकी प्राथमिकताएं कहीं और थीं या जब एक मुख्यमंत्री नाइट्रोजन से ऑक्सीजन बनाने की ‘गंभीर सलाह दे सकता है तो यह भी संभव है कि सरकार में बैठे लोगों को मालूम ही न हो कि महामारी से कैसा निपटा जाता है और विशेषज्ञों से राय लेना उनकी शान के खिलाफ हो। स्थिति बद से बदतर इसलिए भी हो रही है क्योंकि केंद्र व राज्यों के बीच ही नहीं राज्यों के अपने जिलों में भी समन्वय का अभाव है।
इन कमियों को तुरंत दूर करने की जरूरत है ताकि जीवनों को बचाया जा सके और आगे आने वाली चुनौतियों के लिए तैयारी की जा सके। बेंग्लुरु से लगभग 175 किमी के फासले पर चामराजनगर जिला अस्पताल में आॅक्सीजन सप्लाई में कमी आने की वजह से 23 कोविड-19 संक्रमितों की मौत हो गई और कर्नाटक के ही कोल्लेगल जिले में इसी कारण से एक अन्य व्यक्ति की मृत्यु हुई।
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मेरठ (उत्तर प्रदेश) के एक प्राइवेट अस्पताल में जब ऑक्सीजन की कमी से पांच रोगियों ने दम तोड़ दिया तो उनके क्रोधित परिजनों ने अस्पताल में तोड़फोड़ की, स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा। चूंकि अस्पतालों ने अपने यहां भर्ती मरीजों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी उनके तीमारदारों पर छोड़ दी है, इसलिए गुरु ग्राम (हरियाणा) के एक ऑक्सीजन वितरण केंद्र पर इतनी लम्बी लाइन लगी हुई है कि अगर दो दिन में भी किसी को रिफिल मिल जाये तो उसे हिमालय फतह करने का एहसास होता है।
भारत हमेशा से ही ऑक्सीजन के प्रमुख निर्यातकों में रहा है, इसलिए कोविड-19 की भयंकर दूसरी लहर में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी की जो निरंतर खबरें आ रही हैं, वह भारत की प्रशासनिक नाकामी का सबसे मुखर साक्ष्य है। हालांकि राज्य सरकारें कह रही हैं कि वह मौतों के असल कारण की जांच कर रही हैं, लेकिन इस बात में कोई शक ही नहीं है कि ऑक्सीजन संकट है। ऑक्सीजन की कमी मुख्यत: प्रशासनिक कारणों से है कि मांग के अनुरूप सप्लाई नहीं है और कालाबाजारी व जमाखोरी को रोकने के लिए सख्त प्रयास नहीं हैं, लेकिन विडम्बना यह है कि इस पर भी सियासी झुकाव के अनुसार राजनीति हो रही है।
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि केंद्र आवश्यकता से आधी ही ऑक्सीजन सप्लाई कर रहा है, जबकि दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है और जिसने कमी होने की बात कही तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होगी, उसकी सम्पत्ति भी जब्त की जा सकती है, यह अलग बात है कि प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों जैसे आगरा, मेरठ, लखनऊ, कानपुर आदि से ऑक्सीजन की कमी की खबरें निरंतर आ रही हैं। संकट का समाधान तभी किया जा सकता है जब पहले यह स्वीकार कर लिया जाये कि संकट है, शुतुरमुर्ग की तरह बालू में सिर देने से तूफान से कहां बचा जाता है? जब सभी विशेषज्ञों की राय यह थी कि कोविड-19 की दूसरी लहर मार्च-अप्रैल 2021 में आयगी जो पहली लहर से अधिक घातक होगी और उसमें आॅक्सीजन की ज्यादा जरूरत पड़ेगी तो आॅक्सीजन निर्यात का दोगुना किया जाना भी प्रशासनिक चूक ही है।
वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2020 और जनवरी 2021 के बीच भारत ने 9,300 मीट्रिक टन से अधिक आॅक्सीजन का निर्यात किया। वित्त वर्ष 2020 में भारत ने सिर्फ 4,500 मीट्रिक टन आॅक्सीजन निर्यात किया था। जनवरी 2020 में भारत 352 मीट्रिक टन आॅक्सीजन निर्यात कर रहा था, जिसमें जनवरी 2021 में 734 प्रतिशत की वृद्घि हुई। भारत ने दिसम्बर 2020 में 2,193 मीट्रिक टन आॅक्सीजन निर्यात किया था, जबकि दिसम्बर 2019 में निर्यात की मात्रा 538 मीट्रिक टन थी यानी 308 प्रतिशत का इजाफा। फरवरी, मार्च व अप्रैल 2021 के निर्यात डाटा को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है।
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सरकार का कहना है कि महामारी वर्ष 2020-21 में सिर्फ औद्योगिक आॅक्सीजन ही निर्यात किया गया था न कि ‘दुर्लभ मेडिकल अक्सीजन। लेकिन तथ्य यह है कि अब जब अधिक सांसें उखड़ रही हैं, आॅक्सीजन की मांग बढ़ती जा रही है और अनेक राज्य आॅक्सीजन की कमी की शिकायत कर रहे हैं, तो अस्पतालों की तरफ औद्योगिक आॅक्सीजन ही भेजी जा रही है। बहरहाल, आॅक्सीजन संकट उस समय स्पष्ट हो गया जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इसका स्वत: ही संज्ञान लिया। भारत में स्टील प्लांट्स आॅक्सीजन के मुख्य सप्लायर्स हैं। चूंकि इनका असमतल वितरण हैं, इसलिए आॅक्सीजन आवंटन का निर्णय केंद्र लेता है और राज्यों की जिम्मेदारी ट्रांसपोर्ट आयोजित करने की है। समस्याएं यहीं से ही शुरू होती हैं। एक राज्य की आॅक्सीजन आवश्यकता निरंतर बदलती रहती है क्योंकि मांग केस लोड पर निर्भर करती है। राजनीतिक लाभ के लिए डाटा को इधर उधर करने से काम आसान नहीं होता है। इसके अतिरिक्त कुछ राज्य इस स्थिति में भी नहीं होते हैं दूरदराज से अपनी सप्लाई लिफ्ट कर लें। इसलिए यह केंद्र सरकार की ही जिम्मेदारी हो जाती है कि वह राज्यों को उनकी बदलती जरूरतों के अनुसार आॅक्सीजन की व्यवस्था करे, विशेषकर जब सोलिसिटर जनरल का दावा है कि देश के लिए पर्याप्त आॅक्सीजन सप्लाई है, लेकिन कुछ राज्यों में इसकी कमी अवश्य है। इस पर अलग से बहस की जा सकती है कि आॅक्सीजन का असंतुलित वितरण है या वास्तव में विकट कमी है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, आॅक्सीजन के लिए रोते-बिलखते नागरिकों की तस्वीरें, वीडियोज जेट-स्पीड की तेजी से आ रहे हैं और सरकारें अपने नौकरशाहों के जरिये आपस में टकरा रही हैं एक-दूसरे को असक्षम साबित करने के लिए।