नवरात्रि (Navratri) का पर्व शक्ति की उपासना का पावन अवसर है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है और भक्त व्रत-पूजन के साथ विशेष रूप से कन्या पूजन (Kanya Pujan) करते हैं। इसे नवरात्रि का सबसे प्रमुख अनुष्ठान माना गया है, क्योंकि इसमें छोटी कन्याओं को मां दुर्गा का जीवंत स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है कि कन्याओं का आदर करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर परिवार को सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और मंगल का आशीर्वाद देती हैं।
परंपरा के अनुसार कई भक्त विशेष रूप से अष्टमी तिथि को कन्या पूजन (Kanya Pujan) करते हैं। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि 30 सितंबर (मंगलवार) को पड़ रही है। इस दिन कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप मानकर पूजा करना बहुत शुभ माना गया है। अष्टमी का यह पूजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि नारी शक्ति और मासूम बाल्य स्वरूप के सम्मान का प्रतीक है, जो भक्तों के जीवन में देवी की कृपा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
अष्टमी तिथि का कन्या पूजन (Kanya Pujan) शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 5 बजे से 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।
कन्या पूजन मुहूर्त: सुबह 10 बजकर 40 मिनट दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
कन्या पूजन (Kanya Pujan) के नियम और विधि
– कन्या पूजन (Kanya Pujan) के लिए 2 वर्ष से 10 वर्ष तक की कन्याओं को आमंत्रित करना चाहिए।
– परंपरा है कि कन्याओं के साथ एक छोटे बालक को भी बुलाया जाए, जिसे भैरव का स्वरूप माना जाता है।
– सबसे पहले कन्याओं के चरण धोकर उनका आदर और स्वागत करें।
– फिर उन्हें स्वच्छ आसन पर बैठाकर कुमकुम और अक्षत से तिलक करें।
– इसके बाद उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराएं जैसे हलवा, पूड़ी, काला चना, खीर आदि।
– आखिर में कन्याओं को दक्षिणा और उपहार देकर सम्मानपूर्वक विदा करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
अष्टमी तिथि का महत्व
अष्टमी तिथि का अपना अलग ही महत्व है। इसे नवरात्रि का प्रमुख दिन माना जाता है और इसी कारण इसे महाअष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की आराधना होती है। महागौरी को पवित्रता, शांति और करुणा की देवी माना जाता है। अष्टमी पर कन्या पूजन करने से भक्तों को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सुख-समृद्धि और मंगल का संचार होता है।









