Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

ज्ञानवापी मस्जिद: ‘व्यासजी का तहखाना’ में पूजा रोकने की याचिका खारिज

Vyasji ka Tehkhana

Vyasji ka Tehkhana

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने वाराणसी के विवादित ज्ञानवापी मस्जिद के ‘व्यासजी का तहखाना’ (Vyasji ka Tehkhana) में हिंदू पक्ष को पूजा करने से रोकने की याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘यथास्थिति बनाए रखना महत्वपूर्ण है, ताकि दोनों समुदाय अपनी- अपनी तरह से धार्मिक आस्था का निर्वहन कर सकें।’

पीठ ने इस मामले में मस्जिद समिति की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की और यह आदेश पारित किया। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा हिंदू पक्षकारों को पूजा करने की अनुमति देने के फैसले के खिलाफ मस्जिद समिति की अपील ठुकरा दी थी।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मस्जिद के तहखाने (Vyasji ka Tehkhana) में पूजा और अन्य हिस्से (मस्जिद के) में नमाज पढ़ने की व्यवस्था को फिलहाल जारी रखने की अनुमति दी और कहा कि इस मामले में अंतिम सुनवाई जुलाई में की जाएगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मस्जिद में नमाजियों के प्रवेश और नमाज अदा करने के लिए उत्तर की ओर प्रवेश द्वार है, जबकि तहखाने में दक्षिण की ओर।

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील हुज़ेफ़ा अहमदी ने पीठ के समक्ष दलील दी कि 1993 से 2023 के बीच कोई पूजा नहीं हुई। उन्होंने कहा कि वास्तव में मुकदमे में पूजा स्थल अधिनियम को यह तर्क देने के लिए लागू किया गया कि 1947 में प्रचलित यथास्थिति को बदला नहीं जा सकता है।

उन्होंने कहा कि मस्जिद में नमाज़ हर जगह होती है, लेकिन अब उन्हें (नमाज़ों को) रोकने के लिए एक आवेदन आया है। वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अहमदी ने कहा, “थोड़ा-थोड़ा करके वे हमें मस्जिद से बाहर निकाल रहे हैं।”

वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने उच्च न्यायालय के आदेश के पक्ष में दलीलें दीं। पीठ ने हालांकि स्पष्ट करते हुए कहा, “इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मुसलमानों द्वारा नमाज़ बिना किसी बाधा के पढ़ी जाती है। दूसरी ओर, हिंदू पुजारियों द्वारा की जाने वाली पूजा और आराधना तहखाने तक ही सीमित है। इसलिए यथास्थिति बनाए रखना उचित होगा।”
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी का पक्ष रख रहे श्री अहमदी ने अपनी दलील में दावा किया कि निचली और फिर उच्च न्यायालय द्वारा एक असाधारण आदेश पारित किया गया था। इस आदेश का प्रभाव ‘अंतरिम चरण’ में ‘अंतिम राहत’ देना है।

Exit mobile version