प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल्कुल ठीक कहा है कि लॉकडाउन अंतिम विकल्प होना चाहिए। लॉकडाउन लगाते वक्त राज्यों को लोगों की आजीविका का भी ध्यान रखना चाहिए। आजकल जिस तरह कई राज्य धड़ाधड़ अपने यहां लाूकडाउन की घोषणा कर रहे हैं, उसे देखते हुए प्रधानमंत्री की यह अपील बेहद मायने खेज है। कोविड-19 की दूसरी लहर से पूरा देश परेशान है। अच्छे माहौल पर पानी फिर गया है। एक बार फिर देश तमाम तरह की आशंकाओं से दो चार है। फिजां में लॉकडाउन, कर्फ्यू और अनेक अफवाहें तैर रही हैं। ऐसे समय में प्रधानमंत्री ने सामने आकर एक बार फिर से देश का मार्गदर्शन किया है। प्रधानमंत्री ने जनता की पीड़ा एवं परेशानियों का जिक्र करते हुए सरकार के प्रयासों का ब्यौरा दिया, बीते एक साल में कोविड के अनुभवों का जिक्र किया और देश को लॉकडाउन से बचाने के लिए जनता से सहयोग की अपील भी की।
प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों को भी हिदायत दी है कि लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करें। दरअसल प्रधानमंत्री का पूरा संबोधन वास्तविक स्थितियों पर केन्द्रित होने के साथ ही यह भरोसा दिलाने के लिए भी था कि देश में लॉकडाउन नहीं लगने जा रहा है। उन्होंने लॉकडाउन के कारण रोजी-रोजगार और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान की याद दिलाकर एक तरह से राज्यों एवं अन्य संस्थाओं को जगाने का काम किया है। दरअसल लॉकडाउन सिस्टम की नाकामी का ठीकरा जनता के सिर फोड़ने का प्रयास है। लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था चौपट हो जाती है, उत्पादन-वितरण में लगे करोड़ों-करोड़ों श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं, कंपनियां दिवालिया हो जाती हैं। इससे देश के संसाधनों की भारी क्षय होती है।
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पूरे देश को नुकसान होता है लेकिन विशाल सरकारी तंत्र पर खर्चा और बढ़ जाता है और इसे पूरा करने के लिए सरकार अत्यधिक टैक्स लगाती है और इससे फिर आम जनता ही परेशान होती है। कुल मिलाकर जो सरकारी सिस्टम में हैं उनको कोई नुकसान नहीं है क्योंकि उनके वेतन-भत्तों का भुगतान गरीब आदमी टैक्स देकर करता है, लेकिन गरीबों के जीने का सहारा चला जाता है। इसलिए लॉकडाउन लगाने से बचना चाहिए और इसे केवल आखिरी विकल्प के तौर पर ही प्रयोग करना चाहिए। लॉकडाउन को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह रुख गरीबों एवं नौकरीपेशा लोगों की पीड़ा एवं परेशानियों को बयां करता है। पिछले साल जब यह महामारी आयी थी तब देश के पास कोई अनुभव नहीं था। न जांच की सुविधा थी, न दवाइयां थीं और न ही इस बीमारी की कोई समझ थी।
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यही कारण है कि तब कोरोना से मृत्युदर भी बहुत अधिक थी। लेकिन आज कोरोना की व्यापक समझ है, वैक्सीन है, जांच, दवाइयां और बेहतर अनुभव है। ऐसे में लॉकडाउन लगाना देश को बर्बादी की तरफ झोंकना है। केन्द्र सरकार को स्वास्थ्य सुविधाएं और बेहतर करने, आॅक्सीजन उपलब्ध कराने और वैक्सीनेशन को और तेज करने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन साथ ही बार-बार लॉकडाउन लगाने की प्रवृत्ति भी रोकनी चाहिए। अगर राज्य इसका बहुत अधिक प्रयोग करते हैं तो उनके अनुदान में कटौती करके दण्डित करना चाहिए। वैसे भी राज्य केन्द्र के राजस्व पर ही चलते हैं। अगर केन्द्र ने सख्त रुख अपना लिया तो राज्यों की लॉकडाउन लगाने की हैसियत नहीं है।
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सांविधानिक संस्थाओं को भी इस नाजुक हालात को समझना चाहिए कि अगर लॉकडाउन लगाया गया तो करोड़ों रोजगार और कई लाख करोड़ का नुकसान देश को होगा। कांग्रेस को प्रधानमंत्री की इस अपील में भी राजनीति सूझ रही है। कोरोना को लेकर राजनीति तो खैर कांग्रेस और गैर भाजपा दल पहले भी करते रहे हैं। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन को लेकर कटाक्ष करते हुए कहा कि मोदी के ज्ञान का सार यह था कि उनके बस का कुछ नहीं है और लोग अपनी जान की रक्षा खुद करें। अगर आप इससे पार पा लेते हैं कि तो किसी उत्सव और महोत्सव में जरूर मिलेंगे। राहुल गांधी को तो केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति में भी भेदभाव नजर आ रहा है। आंखों पर अगर विरोध काचश्मा चढ़ा हो तो अच्छी बातें भी बुरी लगती है। विरोधी दल क्या कहते हैं, इसकी चिंता किए बगैर सरकार को बस लोगों के जीवन और जीविका की सुरक्षा पर ध्यान होगा।