• About us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Contact
24 Ghante Latest Hindi News
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
No Result
View All Result

बरकरार है 105 साल पुराने चरखे की ताकत

Writer D by Writer D
29/08/2022
in Main Slider, गुजरात, राजनीति, राष्ट्रीय
0
14
SHARES
176
VIEWS
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

– डॉ. प्रभात ओझा

साबरमती के किनारे दो दिन पहले शनिवार को प्रधानमंत्री (PM Modi) का साढ़े सात हजार लोगों के साथ चरखा (Charkha) कातने का कार्यक्रम हुआ । ऐसा कर एक रिकॉर्ड भी बना। यह खादी उत्सव (Khadi Festival) का हिस्सा था। स्वाभाविक रूप से इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने खादी के महत्व और दुनियाभर में उसकी उपयोगिता के बारे में बहुत कुछ कहा। कुछ लोग इस आयोजन को गुजरात के चुनावी वर्ष से जोड़कर देख रहे हैं, पर खादी से जुड़े चरखे का ऐतिहासिक महत्व है। तभी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस क्षेत्र में 2017 में चरखा संग्रहालय का तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उद्घाटन किया था।

वह साल गांधी जी के चरखा खोज की शताब्दी का था। अब तो वह खोज 105 साल पुराना इतिहास बन चुकी है। आज उस संग्रहालय के बाहर 12 फुट ऊंचा स्टेनलेस स्टील का चरखा दूर से ही चमकता है। अंदर आपको 1912 का चरखा भी देखने को मिल जाएगा। लोगों से उपहार में मिले बाकी चरखे भी 50 से 100 साल तक पुराने हैं।

सवाल है कि इस चरखे की याद बार-बार क्यों आती है। इतिहास में झांककर देखें तो पता चलता है कि गांधी जी के समय तक चरखा कातने का काम खत्म हो चुका था। फिर चरखा मिले कहां! ऐसे में गुजरात में गांधी जी से मिली गंगाबाई ने उनका काम आसान कर दिया। स्वयं गांधी जी अपने लेखन में उन्हें गंगा बहन कहते हैं। गंगाबाई ने गुजरात में चरखे की तलाश की और वह मिला जाकर कर्नाटक में गायकवाड़ के बीजापुर में। गांधी जी का काम आसान हुआ। चरखा आत्मनिर्भरता ही नहीं ,आंदोलन का हथियार भी बना। समय के साथ बीजापुर की खादी भी मशहूर हुई।

चरखा, आत्मनिर्भरता और स्वदेशी। यह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का ऐसा इतिहास है, जिसकी कहानी आज भी रोमांच से भर देती है। आज चरखा का ध्यान आते ही मानस में कई तरह के चित्र उभरते हैं, किंतु राष्ट्रपिता के हाथ में जिस धागे और सुतली के साथ लकड़ी का यंत्र दिखता है, वहीं उन सभी पर प्रभावी है। जरूरत के हिसाब से स्वयं गांधी जी ने पहल कर चरखे में सुधार कराए थे। यरवदा जेल और आगा खां पैसेल में कैद के दौरान उन्होंने कारीगरों की मदद से यह किया। फिर साबरमती आश्रम में बापू के साथ रहे मगनलाल गांधी ने भी इस सुधार को आगे बढ़ाया था।  गांधी जी 1915 में जब भारत आए, उन्हें चरखे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वे अपनी भड़ौच यात्रा के बारे में लिखते हैं कि लगभग घसीटते हुए कुछ मित्र उन्हें वहां ले गए। उन्हें वहां की शिक्षा परिषद दिखाई गई।

भड़ौच में ही गंगाबाई से गांधी जी की मुलाकात हुई। दूसरी बार वह गोधरा के परिषद में मिलीं। गांधी जी के स्वभाव में था, शुरुआत में तो जरूरत भी थी कि वे भारत की आत्मा को जानने के लिए लोगों से चर्चा कर रहे थे। बातचीत में मशीनों के बढ़ने और भारतीय ग्रामीण उद्योग धंधों के प्रति गांधी जी की चिंता झलकी। अंग्रेज भारत के संसाधनों से ही कमाई कर ब्रिटेन की जरूरतें पूरी कर रहे थे। दूसरी ओर यहां के ग्रामीण उद्योग पर पानी फिर रहा था। गांधी ऐसे किसी प्रतीक की तलाश में थे, जो ग्राम्यजन के करीब हो। इसी विचार-विमर्श में चरखे की बात आई, परन्तु साथ ही उसके प्रयोग में नहीं होने की भी समस्या बताई गई। चरखे जैसे यंत्र का चलन बंद हो चुका था।

गांधी जी गंगा बहन की क्षमता और हिम्मत के बारे में कहते हैं कि वह घुड़सवारी जैसे कठिन काम भी कर सकती थीं। उन्होंने चरखे की तलाश शुरू की। गुजरात भर में नहीं मिला। खादी वस्त्र के लिए आज प्रसिद्धि पा चुके बीजापुर में कुछ चरखे मिले तो वे भी मकानों के बारजों पर डाल दिए गए थे। गांधी जी ने उन चरखों की मरम्मत कराई। सूत के लिए रूई की पूनी उपलब्ध कराने का काम उमर भाई सोबानी नाम के एक कारखाना मालिक ने किया। फिर गांधी जी को लगा कि सोबानी भाई के कारखाने से पूनी लेने पर अंग्रेजों के कारखानों के खिलाफ ग्राम्य उद्योग का अभियान आगे नहीं बढ़ेगा। इस पर गंगा बाई ने बुनकरों को बसाकर यह दिक्कत भी खत्म कर दी। फिर तो समय के साथ चरखा और आजादी के आंदोलन के बीच रिश्ते की कहानी अमर हो गई।

अंग्रेज एक समय इस चरखे से भी ऐसे तिलमिला उठे थे कि जगह इसके कातने वालों पर जुल्म ढाए और चरखे जला दिए गए। वहीं चरखा 105 साल बाद भी आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का प्रतीक बनकर उपस्थित हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी ऐसे राष्ट्रीय प्रतीकों को अपनाने वाले लोगों में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चरखा चलाकर न केवल आजादी के अमृत महोत्सव मनाने की विचारधारा को मूर्तरूप प्रदान किया है बल्कि यह भी साबित  किया है कि आजादी बोलने मात्र से नहीं, जीने और उसके अनुरूप कार्य व्यवहार करने की संस्कृति से जीवंत और जागृत होती है।

Tags: gujrat newskhadi festivalpm modiSabarmati Ashram
Previous Post

ट्विन टॉवर ध्वंस के मायने

Next Post

मैकरॉनी ने निगल ली दो मासूमों की जिंदगी, तीन की हालत गंभीर

Writer D

Writer D

Related Posts

Lalu Yadav filed his nomination
राजनीति

लालू यादव ने दाखिल किया नामांकन, निर्विरोध RJD का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय

23/06/2025
tej pratap
बिहार

मेरी जान को खतरा है…, लालू के बेटे ने नीतीश सरक़ार से लगाईं सुरक्षा की गुहार

23/06/2025
CM Yogi
उत्तर प्रदेश

एक भारत श्रेष्ठ भारत के स्वप्न दृष्टा थे महान शिक्षाविद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी: सीएम योगी

23/06/2025
उत्तर प्रदेश

2027 के विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियों में जुटी बसपा, आकाश को लेकर बना ये प्लान

23/06/2025
CM Yogi
Main Slider

आप स्कूल में मेरा एडमिशन करा दीजिए… , नन्ही बच्ची के अंदाज को देख मुस्कुरा उठे सीएम योगी

23/06/2025
Next Post
macaroni

मैकरॉनी ने निगल ली दो मासूमों की जिंदगी, तीन की हालत गंभीर

यह भी पढ़ें

Chadi Mubarak

शंकराचार्य मंदिर पहुंची छड़ी मुबारक, वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुआ पूजन

08/08/2021

गुलमर्ग में शहीद हुआ उत्तराखंड का लाल, CM तीरथ ने व्यक्त किया शोक

25/06/2021
Police Encounter

मुठभेड़ में गोली से 25 हजार का इनामी बदमाश घायल, एक गिरफ्तार

14/11/2021
Facebook Twitter Youtube

© 2022 24घंटेऑनलाइन

  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म

© 2022 24घंटेऑनलाइन

Go to mobile version